sweetie radhika radhey-radhey

Friday, August 19, 2011

फोर्थ डिग्री कविता का फॉर्मूला


स्वीटराधिका राधे-राधे
SWEETIE
सारा पुलिस महकमा परेशान-हलकान था। अपराधी इतने शातिर और चट्टान की तरह मजबूत हो गए थे कि उन्हें कितना ही मारो-कूटो-पीटो, अपने जुर्म को उगलते ही नहीं थे। अपराधियों में अचानक आए इस परिवर्तन से कांस्टेबल से लगाकर होम मिनिस्टर तक आश्चर्यचकित थे। आखिर सभी अपराधियों का एकाएक शरीफ हो जाना किसी के गले नहीं उतर रहा था। पुलिस का चिर-परिचित फॉर्मूला, थर्ड डिग्री फॉर्मूला भी छोटे-छोटे अपराधियों के सामने ही ऐसे औंधे मुँह धराशायी हुआ कि जीरो डिग्री से भी बदतर साबित हुआ। सरकार को भी सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, क्या न करे। कुल मिलाकर यह मुद्दा पूरे देश के लिए अहम मुद्दा बन गया था।

जब चिल्ल-पौं मची तो हमेशा की तरह मामले से पीछा छुड़ाने के लिए आयोग गठित कर दिया गया। दस साल बाद आई आयोग की रिपोर्ट में अपराधियों से राज उगलवाने के दस रामबाण अचूक फॉर्मूले सुझाए गए थे। आयोग की रिपोर्ट से नेता, अभिनेता, जनता सभी इसलिए भी निश्चिंत और संतुष्ट थे कि पूरे एक साल में जब एक फॉर्मूला खोजा गया है तो वह रामबाण के साथ ही श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र की तरह भी होगा। 

उत्साहित पुलिस ने दृढ़ इच्छाशक्ति और पूरे शारीरिक व आत्मबल से आयोग के फॉर्मूलों को अपराधियों पर प्रयोग किया। पूरी मुस्तैदी के साथ क्रियान्वित किए गए एक से दस तक के फॉर्मूलों का अपराधियों पर ऐसा असर हुआ जैसे वे टीवी पर राजू श्रीवास्तव का लॉफ्टर चैलेंज शो देख रहे हों। हताश होकर सरकार ने अपना माथा ही नहीं हाथ, पैर, आँख, कान, जुबान सभी पीट लिए।

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एक कस्बे के थाने के टीआई सा. अपने ऑफिस में थके-हारे बैठे थे। दरअसल, उन्होंने एक शातिर और पुराने जिलाबदर अपराधी को बमुश्किल पकड़ा था और उसकी डेढ़ घंटे तक की गई धुनाई से लस्त-पस्त हो गए थे। टीआई साहब ने संतरी को कड़क मीठी चाय लाने का ऑर्डर मारा। इस देश के सौभाग्य से टीआई साहब कवि भी थे। संतरी ने जैसे ही गरमा-गरम चाय टेबल पर रखी, उन्होंने गटागट हलक में उड़ेल ली। मुँह में जर्दे का गुटका दबाते ही उनके शरीर से टीआई का पद तत्काल प्रभाव से टर्मिनेट हो गया और उन्होंने कवि के पद पर अपनी आमद दर्ज करा दी।

टीआई साहब सर्वोतोन्मुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। सभी रसों की काव्य-सर्जना में उनका समान रूप से अधिकार था। कवि के पद पर ज्वाइनिंग रिपोर्ट देने के बाद उन्होंने आठ-दस कविताएँ लिख डालीं। टीआई साहब कविता लिखने के बाद ऐसे खुश, जैसे उन्हें एसपी बना दिया गया हो। थोकबंद कविताएँ लिखने के बाद आम कवियों की तरह उनके मन में उन्हें किसी को सुनाने की लहरें उठने लगीं। थाने के पूरे स्टाफ को तो वो अपनी कविताओं से बरसों से बोर कर रहे थे। टीआई ने सोचा, इन ताजी रचनाओं को किसी श्रोता को तुरंत सुनाना जरूरी है नहीं तो ये बासी हो जाएँगी।

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काफी देर के चिंतन-मनन के बाद सुयोग्य श्रोता की तलाश में उनका मन थाने में बंद उस अपराधी की ओर जा अटका, जिसकी उन्होंने धुनाई की थी। साला! मेरी कविता सुनेगा तो झक मारकर दाद भी देगा और ताली भी बजाएगा। टीआई साहब ने लॉकअप का ताला खुलवाया और रचनाओं सहित अंदर जा धमके। सहमा अपराधी खड़ा हो गया। टीआई साहब बोले! बंधु! कुछ ताजा कविताएँ पेश हैं। 

मगर यह क्या, अपराधी जैसे-तैसे तीन कविताएँ झेलने के बाद ही लाइन पर आ गया और बोला बस! बस!! टीआई साहब मुझे चौथी कविता मत सुनाइए। मैं आपको सब कुछ सच-सच बताता हूँ। बेचारे अपराधी ने फटाफट जुर्म का इकबाल कर लिया। फिर क्या था... टीआई साहब की फोर्थ डिग्री कविता का फॉर्मूला उन सभी थानों में लागू कर दिया गया, जहाँ पदस्थ टीआई होने के साथ ही कवि भी थे। अब सरकार नए थानेदार की भर्ती हेतु अनिवार्य योग्यता में कवि होना जरूरी कर रही है। कविता अपराधियों पर भी असर करती है, ये लोगों ने पहली बार जाना।  

9 comments:

  1. एक बार अकेलेपन से परेशान रमन ज्योतिषी महाशय के पास गया और अपना हाथ आगे बढ़ाता हुआ बोला- महाराज बताइए ना, मेरी शादी कब होगी?

    ज्योतिषी- कभी भी नहीं होगी।

    घबराहट से रमन ने पूछा- पर क्यों?

    ज्योतिषी- भला कैसे होगी! तुम्हारे भाग्य में तो सिर्फ सुख ही सुख लिखा है

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  2. एक पत्नी बहुत समय से पति से यह जिद कर रही थी कि वह उसे कहीं खूबसूरत और रोमांटिक पर्यटन स्थल की सैर कराए।

    पति उसकी जिद के आगे हमेशा ही हार जाता था। इस बार भी वह हार गया। उसने तय किया कि वह पत्नी को किसी हिल स्टेशन पर ले जाएगा और पत्नी की इच्छा और जिद दोनों को पूरी कर देगा।

    जब पत्नी को पता चला तो उसने कहा- पहाड़ी पर जाकर भला हम क्या करेंगे?

    पति ने अकड़कर कहा- तुम्हे धक्का दूंगा

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  3. तुम, एक कच्ची रेशम डोर,
    तुम, एक झूमता सावन मोर

    तुम, एक घटा ज्यों गर्मी में गदराई,
    तुम, चांदनी रात, मेरे आंगन उतर आई

    तुम, आकाश का गोरा-गोरा चांद,
    तुम, नदी का ठंडा-ठंडा बांध,

    तुम, धरा की गहरी-गहरी बांहें,
    तुम, आम की मंजरी बिखरी राहें,

    तुम, पहाड़ से उतरा नीला-सफेद झरना,
    तुम, चांद-डोरी से बंधा मेरे सपनों का पलना,

    तुम, जैसे नौतपा पर बरसी नादान बदली
    तुम, जैसे सोलह साल की प्रीत हो पहली-पहली,

    तुम, तपते-तपते खेत में झरती-झरती बूंदें,
    तुम, लंबी-लंबी जुल्फों में रंगीन-रंगीन फुंदे,

    तुम, सौंधी-सौंधी-सी मिट्टी में शीतल जल की धारा,
    तुम, बुझे-बुझे-से द्वार पर खिल उठता उजियारा

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  4. तुम, एक हवा जो चंपा से बहकर आई,
    तुम, एक धूप जो गुलमोहर से छनकर आई,
    तुम, एक नदी जो मेरी आंखों से छलछल आई,
    तुम, एक दुआ जो मेरी मुट्ठी में बंधकर आई,
    तुम, एक सांझ जो मन की तपन में ठंडक लाई,
    तुम, एक आवाज जो दिल में उतर आई,
    तुम, तरंगित साज जिसे अब तक भूला नहीं पाई,
    तुम, तन्हाई में खुली आंखें जिन्हें अब तक सुला नहीं पाई

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  5. एक बार रमन की मुलाकात एक पंडित जी से हुई। बातचीत के दौरान उनकी संस्कृत की भाषा का ज्ञान देखकर रमन बहुत खुश हो गया और बोला- मुझे भी आपकी तरह संस्कृत सिखा दो..।

    पंडित बोला- भला क्यों?

    रमन- यह तो देवताओं की भाषा है, स्वर्ग में इसकी जरूरत पड़ेगी।

    पंडित : और गलती से कहीं आप नरक में गए तो?

    रमन बोला- उसकी चिंता आप मत कीजिए, नरक में जाने के लिए गालियों का प्रशिक्षण देल्ही बेली से ले लिया है।

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  6. पहला दोस्त- संत कबीर दास जी कहते थे- आज का काम कल पर मत छोड़ो, क्योंकि हो सकता है कल प्रलय आ जाए और सब खत्म हो जाए।

    दूसरा दोस्त- आज का नौजवान कहता है- आज का काम कल पर जरूर छोड़ो.., हो सकता है कल उसके लिए कोई मशीन आ जाए और काम और भी आसान हो जाए

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  7. थके हुए रमन को डॉक्टर ने सलाह दी- 'तनाव कम करने की कोशिश करो। ऐसा करो कल छुट्टी ले लो। बाजार से रंग और कैनवास खरीदों और पेंटिंग करो। बहुत मजा आएगा।

    जब तीन दिन बाद रमन सूजी आंखें लेकर डॉक्टर साहब के पास गया।

    डॉक्टर बोले- ये क्या हुआ तुम्हारी आंखों को।

    रमन झल्लाकर बोला- आपने पेंटिंग करने की सलाह दी थी। तीन दिन से लगातार दिन-रात जाग कर पेंटिंग कर रहा था

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  8. 'मैं सोचती हूँ एक वक्त ऐसा भी आएगा,
    जब आदमी औरत के पीछे खड़ा नजर आएगा।
    ट्रक पर सामान लादने से लेकर
    हाथी का महावत बनने तक
    हर काम में औरतों का प्रभुत्व होना चाहिए।
    आदमी को घर में रुककर खाना बनाना चाहिए
    और जब स्त्रियाँ काम से लौटें तो
    उन्हें गोद में बच्चे लिए उनके लिए घर के दरवाजे खोलने चाहिए।'

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  9. पहाड़ी की ढाल पर/
    लाल फूला है/
    बुरूस ललकारता,/
    हर पगडंडी के किनारे/
    कली खिली है/
    अनार की/
    और यहाँ/
    अपने ही आँगन में/
    अनजान/
    मुस्करा रही है यह/
    कचनार/
    दिल तो दिया-दिलाया /
    एक ही विधाता ने/
    धावे मगर/
    उस पर बोले हजार।'

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