sweetie radhika radhey-radhey

Sunday, August 28, 2011

उत्तिष्ठ भारतः


श्री रामलीला मैदान पर मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राघवेन्द्र सरकार के आशीर्वाद में राष्ट्र हित में भ्रष्टाचार नियंत्रण जनांदोलन राष्ट्र-भक्त अन्ना हजारे के नेतृत्व में सफल रहा
यह सचमुच भ्रष्ट एवं निरंकुश भारतीय राजनीति पर जन-मानश की विजय है ..जिसके भविष्य में दूरगामी लाभ राष्ट्र को अवश्य  मिलेंगे !

आश्चर्य हुआ था जब इस देश के कथित युवराज राहुल गाँधी संसद में दिए अपने लिखे-लिखाये भाषण द्वारा इस जन-अभिव्यक्ति को राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध कर रहे थे !
उनके भाषण में था यदि कश्मीर के निवासी कश्मीर को अलग राष्ट्र हेतु आन्दोलन कर दें तो क्या कश्मीर देश से अलग कर दिया जायेगा ?
तो भाईसाहब राहुल जी आपको यह जनांदोलन कश्मीरी आतंकवाद के सदृश दीखता है .. क्या इस आन्दोलन में पुलिश की दमनात्मक प्रक्रिया के बाद भी कोई हिंसा हुई ...
और राहुल जी आप यह भी जान लें यह आन्दोलन देश की एकता व अखंडता के लिए था (जिसमें भाषा-प्रान्त-जातीयता से ऊपर उठकर देश के हर वर्ग ने अपना समर्थन दिया ) देश के टुकडे करने के लिए नहीं ..
और रही सत्य-वात -  तो राहुलजी आप और आपकी कांग्रेश पार्टी तो सदैव से आतंकी कश्मीरियों की सुनती आई है ..धारा ३७० लगाकर आप ही कश्मीर को शेष देश से अलग किये हुए हो ! आपने विस्थापित कश्मीरी पंडितों का दर्द कभी सुना ही नहीं यद्यपि आपके परनाना पंडित नेहरू स्वयं कश्मीरी पंडित समुदाय से थे !!!
आप की दादी जी  स्व.श्रीमती इंदिरा गाँधी भी अपनी शान में राष्ट्र के सपूतों द्वारा जीते गए युद्ध .19971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में वंदी 90000 पाकिस्तानी सैनिकों को शिमला समझौते में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के समक्ष बिना कोई शर्त रिहा कर युद्ध को हार जाती हों .. नहीं तो उस समय हम पाक अधिकृत कश्मीर को हारे हुए पाकिस्तान से वापस ले सकते थे !
इसी प्रकार आपके परनाना जी स्व.प. नेहरू . ने 1947 में तत्कालीन सेनाधिकारियों के मना करने एवं लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की असहमति के बाबजूद भी .. युद्धविराम कराकर एवं संयुक्तराष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाकर  --प्लेट में सजाकर आधा कश्मीर पाकिस्तान को तोहफे में दे दिया था और कश्मीर को विवादित स्थली बना दिया था !
अब आप बताएं कि आप व आपकी पार्टी तो सदा से ही कश्मीर को लुटाती आई है/देश को बाँटती आई है 
एवं जन-आंदोलनों को कभी आपातकाल लगा कभी निरंकुशता कह लूटती आई है
आपके पापाजी स्व.राजीव गाँधी भी देश में एक राष्ट्र-एक कानून को लागू नहीं कर सके---
क्यों मुस्लिम या अन्य पर्सनल ला कानून इस देश की अखंडता को कलंकित करते है ?
..क्या आप कोई और संप्रभुता वाला देश बता सकते हैं जहाँ भारत की भांति अनेकों कानून धार्मिक तुष्टिकरण हेतु लागू हों ?
..क्यों  पोटा जैसा एक अच्छा कानून हटा कर हाल ही में एक भेद-भाव वाला वहुसंख्यक हित विरोधी नया कानून लगाने की हिमायत की जा रही है !?
मि.राहुल क्या  आप बता सकते हैं -
-क्यों आपकी पार्टी ने मंडल आयोग सदृश सिफारिसोंको लागू कर देश को जातीयता के जाल में टुकड़े-टुकड़े कर दिया ?
..आप क्यों जातीय आरक्षण के नाम पर देश-समाज को बाँट रहे हैं ?
रही बात लोगों के एकत्रित हो अनशन करने की तो एम्स अदि उच्च -शिक्षण संस्थानों के विध्यार्थियों के विरोध-हड़ताल के वावजूद भी ..निरपराध-भोले-भाले बेरोजगार युवाओं के द्वारा आत्मदाह करने पर भी आप की पार्टी मंडल के नाम वोट लूट देश एवं देशवासियों को खा रही है !
और आप बोल गए कि यदि लोगों ने कहा तो क्या ?? आरक्षण को ख़त्म कर देंगे  ??
यानि आरक्षण जैसी सामाजिक समरसता को ग्रसित करने वाली बिष-वेल को आप कभी नहीं काटेंगे और बिष-बेल को बढ़ा-चढ़ा कर देश-समाज को बिषदंशों से निष्प्राण कर अपना एवं अपनी प्राइवेट लिमिटेड कांग्रेस पार्टी का गुलाम-बंधुआ मजदूर बनाये रखेंगे 
मुझे व इस सम्पूर्ण देश को पता है कि आप उस काम  को तो कभी नहीं करेंगे जिसमें देश-देशवासियों की आवाज हो ..
आप और आप की पार्टी तो अंग्रेजों की भांति फूट डालो और राज्य करो की नीति  के तहत इस देश को वर्वाद कर शाशन करने पर तुली है 
जन-अभिव्यक्ति को आतंकवाद एवं आतंक्व्वाद-हिंसा को जन-अभिव्यक्ति-मानवाधिकार कह किस को छल रहे हो ?? 
महाशय बहुत हुआ अब जनता जाग गयी है ..
यह तो पहली वारी है कि आपका दमनचक्र टूट गया और आपने जनता के समक्ष क्षमा मांग घुटने टेक दिए .. 
आगे हम और करेंगे अपने महान राष्ट्र की सेवा-उन्नति के लिए
और आप सब राजनीतिज्ञ इसी प्रकार बस देखते रह जाओगे -अपने कुकर्मों की क्षमा मांगते हुए !! 
जय हिंद-वन्दे मातरम -जय भारत !!







कोई दर्द न जाने देश का 
भारत माता के स्नेह का 
स्वाधीनता के साथ ही दिया दंश 
पाकिस्तान का 
झूले थे फंद जो लाल प्यारे 
किया उनका अपमान था 
चीन से पिछलग्गू से 
हराया भारत निष्प्राण सा 
तिब्बत किया उसको समर्पित 
वीटो भी देदी दान कर 
लद्दाख-अरुणाचल  में भी 
रोका न उसको पहचान कर 
केशर के चन्दन जैसा कश्मीर 
छोड़ा आधा गैर मानकर 
लूट लिया ये देश प्यारा 
बाप-दादे की जागीर जानकर 
दुश्मनों को करके निरंकुश 
भोली प्रजा खूब सताई है 
वोटों की खातिर इन्होंने 
गायें भी कटवाई हैं 
धर्म-निरपेक्ष कह-कहा 
धर्म को बांधा कपट में 
अधर्म-विधर्म को पोषित 
कर दिया है जगत में 
आरक्षण विष वेल सम्मुख 
समाज में खींची खाई है 
निज राज्य हेतु ईन पापियों ने 
भ्रष्टाचार की पूंजी जमाई है 
भाग्य से जो शास्त्री-वल्लभ मिले 
दुर्भाग्य ! न इनने चलने दिया 
मार-डाला धोखे से 
न राज्य सत्य का निभने दिया 
आज भी तानाशाह जैसे 
आचरण दिखलाई है 
सत्य की आंधी चली अब
न इनकी भलाई है 
बीत गए वो दिन काले 
भूखी जनता 
इनकी मलाई है 
भारतमाता की जय 
वन्दे मातरम !!  

2 comments:

  1. भारतीय वेद शास्त्रों से-अधर्म पर खामोश रहना भी पाप समान


    स्वयं पाप न करना ही धर्म का परिचायक नहीं है वरन् जिस पाप को रोकना संभव है उसका प्रतिकार न करना भी अधर्म है। हम अपने मित्रों, रिश्तेदारों या परिवार के सदस्यों के पाप में स्वयं लिप्त न हों पर उनको दुष्कर्म करते देख मौन रहना या उनको न रोकना भी अधर्म की श्रेणी में आता है। चूंकि मनुष्य को प्रकृति ने हाथ पांव, वाणी, तथा आंखें दी हैं और उसके साथ ही बुद्धि भी प्रदान की है तब यह उसके लिये आवश्यक है कि वह अपने समूहों को पाप कर्म से रोके। अगर कोई ऐसा सोचता है कि वह स्वयं पाप नहीं कर रहा है इसलिये वह धर्मभीरु है तो गलती पर है। यह उदासीनता अधर्म का ही एक बहुत बड़ा भाग है।
    हमारे वेद शस्त्रों में कहा गया है कि
    —————–
    धर्मादयेतं यत्कर्म यद्यपि स्यान्महाफलम्।
    न तत् सेवत मेधावी न तद्धिमिहोच्यते।।
    ‘‘इस धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। जहां विद्वान लोग न्याय का समर्थन नहीं करते वह अधर्मी ही कहे जाते हैं।
    यत्र धर्मोह्य्मेंण सत्यं यत्रानृतेन च।
    हन्यते प्रेक्षामाणानां हतास्तत्र सभासदः।।
    ‘‘जहां अधर्म को देखते हुए भी सभासद चुप रहते हैं और उसका प्रतिकार नहीं करते वह भी पाप के भागी हैं।’’
    कहते हैं भी अन्याय करने से अधिक पाप अन्याय पाप सहना है। उतना ही पाप है अपने सामने अन्याय, व्याभिचार, भ्रष्टाचार और बेईमानी होते देखना। वैसे धर्म साधना एकाकी होती है पर उसका निर्वहन करना सामूहिक गतिविधियों में ही होता है। परमार्थ, दान तथा धर्म की रक्षा का दायित्व बोध बाहरी गतिविधियों से प्रमाणित होता है। जब कोई आदमी अपनी जाति, परिवार और मित्र समुदाय के पथभ्रष्ट होने पर यह सोचकर चुप रहता है कि वह अपना धर्म निभा रहा है तो उसे बताना चाहिए कि यह भी अधर्म का ही एक भाग है। धर्म का आशय यह है कि आप स्वयं पाप न करें तो दूसरे को भी करने से रोकें।

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  2. प्रेम शब्दों की भाषा नहीं ये तो अनुभव में आता है
    बिन राष्ट्र-धर्म प्रेम के मानो कुछ नहीं पाता है
    मतवाले हैं वो सब जन जिनका स्वार्थ ही नाता है
    संकीर्ण विचारों को तज जो प्रेम से गाता है
    कल्याण हुआ समझो जिसे समझ में आता है
    जयभारत-जयहिंदुत्व में जय सबका हो जाता है

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