sweetie radhika radhey-radhey

Saturday, February 26, 2011

राष्ट्र-धर्मं रक्षार्थ एक और महाभारत की परमावश्यकता

राष्ट्र-धर्मं रक्षार्थ एक और महाभारत की परमावश्यकता 
हाय ओ भारत श्रेष्ठ धरा, तेरी संतति चेत नहीं पाई !
जग चेता सब बने धुरंधर ,ज्ञान भूमि है मुरझाई !!
आके पीट गए लुटेरे ,अजर-अमर की संतानों !
अब भी चेत लो चेती जायतो ,मूरखता को पहिचानो !! 
बातें बनाओ कुछ न मिलेगा , स्वाभिमान पाना है तो !
एक बार पुनि पुण्य भूमि पर, विगुल समर बज जाने दो !!
"महाभारत" अनिवार्य  है ,धर्मं-राष्ट्र संस्थापनार्थ !
बलि चढ़ जाएँ कायरता अरु, क्षुद्र-क्षुद्र से अनत स्वार्थ !!
जय हिंदुत्व-जय भारत

मित्रो , आज से हम भारतीय स्वाभिमान पर , भारतीय जन-मानष के नैतिक-आध्यात्मिक एवं अन्यान्य प्रकार के विविध चारित्रिक पतनों के निवारणार्थ एक समीक्षा करेंगे कि हम भारतीय आत्मसंतुष्ट, पूर्ण स्वाभिमान से क्षुद्र तृष्णा-अभिलाषाओं में किस प्रकार निज स्वाभिमान को भुला बैठे हैं , परिणाम स्वरुप विगत हजारों बर्षों से किस प्रकार आतताइयों-अधर्मियों एवं दुष्ट-व्यापारियों के अत्याचारों को सह आज निर्लज्जता की सीमा पर पहुँच राष्ट्र-धर्मं को भूल "मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति "  वाली लोकोक्ति के निकट अप्रतक्ष परतंत्रता की बेड़ियों में जकड गए हैं ! जिसका अन्धकार हमें दृष्टि हीन बनाये हुए है , हमें भविष्य के विनाशों का बोध नहीं है , आज सर्वत्र आपा-धापी , मेरा-तेरी लूट-खसूट मची है  ! अपने भोग-विलाश में अन्य की पीड़ा-शोषण अनुभव नहीं होता ! झूंठे-झूंठे राग गाकर स्वयं को संगीत सम्राट सिद्ध कर मिथ्या संतुष्टि पाने जैसी मूर्खता रूपी वयार भारतीय वातावरण में चहुँ और वह रही है ! कहीं भाषा के नाम पर , कहीं जाति के नाम पर , कहीं क्षेत्रवाद के नाम पर गरल सदृश राजनीती जोकि सच्चे अर्थों में घोर अराजनीति है, की जारही है , जन-मानष के विवेक को विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों-कुचक्रों से नष्ट किया जा रहा है !
आगे में चर्चा करुँगी कि  किस प्रकार भारत राष्ट्र-धर्मं को जयचन्द रूपी वर्त्तमान नेताओं की घृणित कुचालों ने पंगु वना पुनः आताताइयों-अधर्मियों के अत्याचारों के तले देश को धकेला है ! किस प्रकार जन-मानष की विवेक शून्यता से कांग्रेश रूपी डाकिनी इस महान राष्ट्र-संस्कृति का लहू पी-पी कर घोटाले कर रही है, किस प्रकार कम्युनिस्टी ड्रैगन अपनी आग से इस पावन राष्ट्र-संस्कृति-धर्मं को कुटिल कांग्रेश के संरक्षण में बर्षों से झुलसा रहा है ! कैसे इस पतित-पावनी गाथा में छोटे-छोटे , भाषाई-जाति एवं क्षेत्र रूपी संकीर्ण विचार-धाराओं से ग्रसित साँप जैसे विभिन्न राजनैतिक दल ,इसी भ्रष्ट कांग्रेश  के आश्रय-बढ़ावे  में देश एवं धर्मं में लगातार अपने बिष भरे दंश चुभो,देश-धर्मं का विनाश करने में तुले हैं !
! राधे-राधे !



ये शत्रु मानवता के हैं ! ये शत्रु भारत देश के हैं ! ये शत्रु धर्मं-संस्कृति के हैं !

जग में केवल माया दरशे !
अन्य नहीं कछु रीति नीति है !
उपदेशें वनें सिद्ध-सुजान !
अपनी-अपनी कूट नीति है !! 
स्वार्थ बोले माया डोले !
रचे कुचाल पाप के फंदे !
पर उपकार कठिन भयो दुष्कर !
कायरता के मलिन पुलंदे !!
योग-ध्यान सब ढोंग में दर्शें !
सत्य छिपे अब झूंठ के धुन्धे !!
झूंठे राग गाय करें भक्ति !
भ्रम ही करें कहें भक्त हैं वन्दे !! 
उपदेशें जन में मायावी !
करें रात दिन छल के धंधे !!
बगुला भगत सी रीति इनकी !
कर्म महा हिंसक अरु गंदे !!
कोई कहे देश कोई कहे धर्मं !
चतुर महा ये शिकार के छंदे !!
वाक जाल में लूट लें सब को !
निज स्वार्थ वस कुटिल परिंदे !!
भगवानहु  को बेच दें पापी !
रेतें गले चलाय कें रंदे !! 
जो मूरख मिल जाय इन्हें जब !
चेला करि पहिनावें फंदे !! 
कंठी-माला अरु गुरु निष्ठां !
व्यर्थ है सब ये भ्रम के पण्डे !!
 कहें गोविन्द करें तृप्त इन्द्री !
मठ इनके भये पाप के अंडे !!
विलासिता भोगें संयमी कहावें !
ये सब निश्चर जाति के वन्दे !!
"स्वीट राधिका" कहे जन-मानष से !
धुनों इनको अब लेके डंडे !!
ये शत्रु मानवता के हैं ! ये शत्रु भारत देश के हैं ! ये शत्रु धर्मं-संस्कृति के हैं ! इनका सामाजिक बहिष्कार स्वस्थ्य समाज के लिए अनिवार्य है !
आओ संकल्प लें ऐसे धार्मिक-आध्यात्मिक-राजनैतिक लुटेरों को इनकी विलासिता-सत्ता से उतार फेंकें - सनातन धर्मं -सनातन संस्कृति -श्रीमदभगवद गीता के द्वारा "महाभारत" रूपी धर्मं युद्ध का परम आदर्श-अनिवार्य भगवद सन्देश प्रदान कर रही है !यदि आपकी इस महाभारत में योद्धा बन संकल्पित होने की इच्छा  है तो प्रस्तुत नोट को अपने सभी मित्रों को पोस्ट करें एवं ब्लॉग "राधे-राधे " से निम्नांकित एड्रस लिंक पर क्लिक कर फोलो करें
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...राधे-राधे..हरेकृष्ण !!
क्या आपको ये देश आज स्वतंत्र-आत्मतुष्ट दिखता है ? क्यों गुंडे-बदमाश उच्च पदों पर स्थापित हैं ? क्यों एक ही परिवार के चारों ओर  देश की राजनीति घूम जाति है ? क्यों पुलिस बिट्रिश काल की तरह जनता की सेवक न हो कर भक्षक है ?क्यों भारतीय धन स्विटजर-लेंड की बैंकों में है ? क्यों आज जनता बेरोजगार एवं गरीब है ? क्यों आरक्षण रूपी बिष वेळ देश में व्याप्त है ? क्यों जम्मू & कश्मीर के लिए अलग से संबिधान है ? क्यों भारत में समान कानून-न्याय व्यवस्था नहीं है , जबकि छद्म धर्म निरपेक्ष वादी भारत को धर्मं निरपेक्ष कहते हैं , क्यों मुस्लिम विधान के नाम से अलग से क़ानूनी आख्या है ? जब अमरनाथ-कैलाश मान सरोवर जाने के लिए कोई व्यवस्था-अनुदान नहीं तो क्यों काबा जाने के लिए राजकीय सहायता ?क्या हिन्दू होना संकीर्ण-हिंसक या पाप है ,जो इस देश में हिन्दू-हिंदुत्व कहने पर उसे राजनैतिक अश्प्रस्य करार दिया जाता है ? नरेन्द्र मोदी राष्ट्र-भक्त या भारत सम्मान क्यों नहीं है जो उसे भारत में व विदेशों के द्वारा भी अपमानित कराया जाता है , जबकि मोदी आज एक मात्र राजनैतिक व्यक्तित्व है   जिसका मेरे द्वारा उल्लेख उसके राष्ट्र निष्ठां कार्यों-सेवा से हो ही जाता है  ? क्यों कर देश में साधू-संतों के नाम पर बहिरुपिये नाना भांति के स्वांग रच कर जन-मानष को लूट/खा रहे है ? मित्रो इसका एक ही कारण है परतंत्रता ! अभी हममें परतंत्रता वाकी है , आवश्यकता है जन-चेतना की ,एक और धर्मं युद्ध की -एक और "महाभारत" की !
!!स्वीट राधिका राधे-राधे!!
 मित्रो, यदि ये सब पढ़कर आपका लहू राष्ट्र एवं धर्मं सेवा के लिए उबलता हो , आपकी मति राष्ट्र एवं धर्मं सेवा की दिशा में सोचती है-कुछ सेवा की उत्सुक है तो सर्व प्रथम इस नोट को अपने सभी मित्रों-परिचितों को पोस्ट करें तथा राष्ट्र एवं धर्मं सेवा ब्लॉग "राधे-राधे" से जुड़ें व फोलो करें, ब्लॉग ऐड्रस निम्नांकित   लिंक पर क्लिक करें !
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राधे-राधे..हरेकृष्ण !!
jay mahakal jay vishwanath !
jay baidhya nath jay som nath !!
jay mamleshwar jay rameshwar !
jay ghrishneshwar kedar nath !!
jay nageshwar jay trayambakeshwar !
jay gopeshwar pashupati nath !!
jay bhuteshwar jay asheshwar !
jay rangeshwar jay adi nath !!
jay mahabaleshwar jay mahadev !
jay panch madeshwar jay gauri nath !!
jay vishwambhar jay digamvar !
jay jagat pita aru jagat mat !!
audhar dani jay ashutosh !
karunavatar jay bhut nath !!
jay-jay shambhu-jay-jay shiva ji !
jay-jay shankar jay uma nath !!
jay gauri pati kailash vasi !
jay amar nath jay bhakt nath
shri radhey -radhey 
har-har mahadev

Sunday, February 20, 2011

तीन लोक ते मथुरा न्यारी

आश्चर्य- मथुरा में एक mr. एवं miss . मथुरा  ,
के नाम से प्रतियोगिता आयोजन !
जिसके जजों द्वारा चयन करते समय बारम्बार खेद व्यक्त करना ,
कि प्रतियोगिता मथुरा में है ,
परन्तु , सब-अधिकांश प्रतिभागी वेस्टर्न प्रजेंटेसन दे रहे हैं !
उनको मथुरा शैली - मथुरा कल्चर का कोई भान नहीं !
मित्रो, यह बड़ा कडुवा सत्य है कि इस  -
"तीन लोक ते मथुरा न्यारी संस्कृति" में 
जोकि बड़े-बड़े आघातों-संकटों के उपरांत भी 
अपने स्वरुप से अविचिलित रही ,
पर आज पश्चिम की भोग प्रधान संस्कृति का आधिपत्य हो गया है !
जहाँ 'सरल-जीवन - उच्च-विचार' केन्द्रित थे 
वहां अधिकांश वर्ग में "दिखावटी-जीवन - ओछे-विचार" संकेंद्रित हैं ! जो संस्कृति दुष्ट तुर्क-मुग़ल आक्रान्ताओं के आक्रमण से नहीं डिगी, जिसको बिट्रिश परतंत्रता की जंजीरें नहीं बांधसकीं वो अपने ही जन-मानस के नैतिक-आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पतन से व्यग्र है !
सबसे पहले मेरा सभी माननीय प्रतियोगिता जजों-(चयन कर्ताओं जिन्हें हम टेलीविजन पर देख रहे हैं)  से अनुरोध है ( मेरा मानना है कि सभी जज-चयनकर्ता , ब्रज संस्कृति-धरोहर के संवाहक हैं, उनका ब्रज-वसुंधरा के प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान रहा है एवं वर्त्तमान में भी वे इसी दिशा में संलग्न हैं और श्रीजी की कृपा से आगे भी ब्रजसेवा करेंगे  ) कि इस प्रतियोगिता का नाम mr. एवं miss. mathura  न रखकर , जोकि ब्रज-सांस्कृतिक रूप से अनुचित है , ब्रजधाम में सखी एवं ग्वाल-वाल होते हैं ! न कि पश्चिमी मि.,मिस. यदि प्रतियोगिता नाम ही अन्य संस्कृति का होगा तो कैसे प्रतिभागी अन्य संस्कृति को न दर्शायेंगे ! और भाइयो हमारे ब्रज में केवल नन्द-लाल लीलाधारी भगवान श्री कृष्ण ही पूर्ण पुरुष हैं (मि. हैं ) यहाँ किसी और को मि. कहना नितांत अनुचित है  !  कितना अच्छा हो यदि प्रतियोगिता नाम ग्वाल-वाल ब्रज मंडल एवं सखी-सहेली ब्रज मंडल हो जोकि सभी प्रकार से व्यापक द्रष्टिकोण लिए है ,एवं ब्रज-भूमि संस्कृति की संवाहक -पोषक है ! केवल मथुरा नाम रखना संकीर्ण है 

जोकि कंस के महोत्सव की ही याद दिलाता है !
राधे-राधे
जय श्री कृष्ण
जय ब्रज वसुंधरा

Saturday, February 19, 2011

धर्म न दूसर सत्य समाना

धर्म न दूसर सत्य समाना
हरेकृष्ण !
मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !
सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !
हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित  धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !
मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है ! 
अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं ! 
तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !
इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत  नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !
उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं  !
जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति  के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !
यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा  , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !
अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !
मित्रो,
यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है ! 
यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"
और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन से प्राप्त होता है !
तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन को अपना आधार वना प्रेम से गायें-
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
जय-जय श्री राधे !!

Thursday, February 3, 2011

देशप्रेम को भूल गए सब निज-निज तृष्णा लाभों में-

 जय भारतमाता 

कायरता बन स्वभाव भारत में ,छायी घोर गुलामी है !
टुकडे-टुकडे किये देश के , झूँठी वीर कहानी है !!
भूतकाल को छोड़ दें तो , खाली हाथ रहेंगे हम ! 
हजारों सालों से पिटना-कटना ही पाएंगे हम !! 
देशप्रेम को भूल गए सब निज-निज तृष्णा लाभों में !
धर्म-कर्म को नष्ट कर दिया , जाति के जंजालों में !!
लालच के वश लुटा दिया है , स्वाभिमान को नालों में !
ठेष लगाई दर्शन-गुरु को , पाखंडों की चालों ने !!  
कोई लुटा आलस में आके , कोई करके दया लुटा गया !
जीत मिली थी समर भूमि में, उसको भी लौटा दिया !!
मूरख हैं हम एक धरा पर , जीत को हार बना दिया !
अपना तीर्थ जो केशरिया था , राक्षस वहाँ वसा दिया !!
श्रीनगर सा वैभव अपना , मूर्खता में गँवा दिया !
कोई एक न दोषी सब दोषी हैं , मौका था जो गँवा दिया !!
यदि सच्चे वीर यहाँ होते तो , तोड़के मुँह गद्दारों के !
राजनीत से दूर फैंकते , तिलक करते रखवालों के !!
हाय ओ भारत ज्ञान भूमि , तुम ही क्यों न कुछ करते हो !
भ्रष्टाचार-भुखमरी जैसी , हायों को क्यूँ सहते हो !!
दूर करो मेरी माँ भारती जयचंदों की भीड़ों को !
बदल के लिख दो उज्जवल-उज्जवल , हार चुकी तकदीरों को !!
पूरे करदो जगदम्बे माँ राम-श्याम और विश्वनाथ के गीतों को !
सुनें मुरली मधुर रटें राम-राम , हर-हर महादेव संगीतों को !!
तोहे करे पुकार मेरी मातृभूमि तेरी बेटी 'स्वीटी' प्यारी !
मेरे पूर्ण मनोरथ कर माता , मेरी माँ भारती सबसे न्यारी !  
'राधे-राधे' स्वीटी राधिका 'राधे-राधे'
मित्रो ,
जैसा आपको पता है कि फरबरी माह चल रहा है , आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण,बाजार में-समाज में कुछ पाश्च्यात्य हवा वह रही है ! वेलेंटाइन जैसे पर्वों का चलन जोरों पर है,जिस पर विभिन्न राजनेता- समाज सुधारक-धर्मं प्रचारक विभिन्न वक्तव्य दे-दे कर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखने की लालसा में,आंधी की तरह गरज-गरज कर समाज को, लोगों को डरा रहे हैं, 
यद्यपि प्रेम इस गर्वित संस्कृति की रग-रग में विद्यमान है ! 
इस फरवरी (माघ मास में ) के साथ ही भारत में भी प्रेमोत्सव के रूप में मदनोत्सव मनाया जाता है !
माता सरस्वती का आशीर्वाद लेकर , 
प्रेम बर्षा होली का आधार स्थापित कर दिया जाता है !
जोकि संपूर्ण विश्व में मनाये जाने वाले किसी भी प्रेमोत्सव से महान है ! 
कोई कहता है कि भारत में वेलेंटाइन को माता-पिता की पूजा कर मनाओ , कोई कहता है मनाने वालों पर डंडे चलाओ !
अरे ! ये कहो, विदेशी आयातित रूप छोड़ अपना महान स्वदेशी स्वरुप वसंत-होली पर्व मनाओ ! 
और विश्व में लिख दो कि "सबसे आगे हैं हिन्दुस्तानी " 
और रही इन भाषण-वक्ताओं की बात तो ये बिल्ले हैं , 
सामने म्याउँ-म्याउँ कह संत बनेंगे , 
मन से तुम्हारी संपत्ति आदि पर डकैती डालने को उत्सुक हैं ! 
 हरेकृष्ण !
कृपया वेलेंटाइन दिवस के नाम पर व्यर्थ में हो-हल्ला न करें !
इसके पक्ष या विपक्ष के गुटों से इसका प्रचार ही होता है !

महान हिन्दू संस्कृति में प्रतिदिन माता-पिता-गुरु के चरण स्पर्श का महान परामर्श पहले से ही है ! कोई नए दिन वो भी १४ फरबरी को बिशेष रूप से इसे आयोजित कर , एक प्रकार से हम १४ फरबरी को महिमा से अलंकृत कर प्रचारित करेंगे ,

कि कोई वेलेंटाइन दिन है जिससे डरकर हम माता-पिता की पूजा करते हैं !
भाइयो, अपने देश में ८०% जन समूह इन वेलेंटाइन दिनों से अनभिज्ञ है, क्यों व्यर्थ में हल्ला कर इनको आगे बढ़ाते हो !
हाँ ,भारतीय संस्कृति कभी भी प्रेम के विपरीत नहीं है ! हम महान आर्य विश्व में दर्शन गुरु हैं ! हमारे यहाँ भी वेलेंटाइन से कहीं आगे , वसंत उत्सव मनाया जाता है ! वसंत अर्थात कामदेव , सीधा अर्थ है काम उत्सव, 'मदनोत्सव' और ये भी माता शारदा की पूजा कर आशीर्वाद से होली तक मनाया जाता है !
मित्रो, होली इस उत्सव की अद्भुत प्रेम बर्षा है ! जब पहले से ही एक महान उत्सव हमारी संस्कृति में है जिससे १००% भारतीय परिचित हैं तो क्यों कर हम किसी आयातित उत्सव में रूचि लेंगे !
मेरी सभी नेताओं-प्रचारकों से विनती है भारतीय जन-मानष स्वयं में जागरुक है , अपना अच्छा- बुरा जानता है !
आप कृपया व्यर्थ में श्रम न करें, अपने घर को सुधारें-अपने आप को सुधारें
  और मित्रो,
हमारी संस्कृति को किसी से खतरा नहीं है , यदि खतरा है तो केवल 
स्वयंभू ढोंगी धर्मं-गुरुओं, नेताओं ,लालची जन-समूहों एवं मूर्ख-अंध अनुयायियों से जो गिद्ध की तरह भोली-भाली जनता  का माँस नोंचते  हैं तथा धर्मं एवं आस्था को घायल करते हैं ! 
 हरेकृष्ण ! 
देखिये समाज में एक गति होती है जो समय के सापेक्ष परिवर्तित होती रहती है, इसे आप गति-शील समाज भी कह सकते हैं , 
जिन समाजों में परिवर्तन दर नहीं होती ,वे समाज गतिहीन समाज कहलाते हैं ! मृत समाज होते हैं !
समाज अपना अच्छा-बुरा स्वयं निर्णय कर सकता है ! समाज के ऊपर अच्छा-बुरा थोपना तालिवानिकरण है ,
जो अंततः समाज को खा जाता है !
हिन्दू धर्मं कभी कट्टर नहीं रहा ! हिन्दू संस्कृति परम उदार है -
यह सर्वत्र "सार -सार को गहि रहे थोथा देहि उड़ाय " नियम से-
शुभ-शुभ एकत्र कर निरर्थक को मल सद्रश फेंक देती है ! 
रही बात वेलेंटाइन की तो इसे माता-पिता के लिए मनाने पर कुछ वढेगा नहीं तथा प्रेमियों के लिए मनाने से कुछ घटेगा नहीं !
और भारतीय एवं पश्च्यात दोंनों जगह मातृ दिवस-पितृ दिवस मनाने का अलग से विधान एवं समय है !
जो प्रेमियों के नाम है उसे प्रेम में ही समर्पित करें !
कैसा होगा यदि घोषित कर दें कि होली केवल अपने माता-पिता से खेलो !
मित्रो ये करो-ये सलाह है -ये बड़ा बुरा है-ये अच्छा है -ये ईश्वर का बिशेष प्रतिनिधि है - ये सब मायिक वाक जाल हैं जिनको लोग रच-रच कर स्वयं की प्रसिद्धि हेतु प्रचार-व्यापार करते हैं ! 
ऐसे लोगों के लिए श्री रामचरितमानस में कहा गया है -
"पर उपदेश कुशल बहुतेरे ! जे आचरहिं ते नर न घनेरे !!" 
इनकी कथनी कुछ और एवं करनी कुछ और है ! 
"ये राम नाम जपना ,पराया माल अपना ! भाव वाले हैं !"
इनके लिए ईश्वर प्रेम या समाज सेवा ऐसा कोई भाव नहीं होता !
मित्रो,
अच्छे व्यक्ति दिखावा नहीं करते , 
उनके लिए प्रचार कोई मायने नहीं रखता ! 
वे शहर-शहर अपने होर्डिंग्स नहीं लगवाते ! 
वो स्त्रियों के समूह अपने पीछे-पीछे लगाकर नहीं घूमते !
चेले-चेलियों की संख्या नहीं बढ़ाते !
सुरक्षा गार्डों के साये में नहीं घूमते ! 
किसी का ह्रदय नहीं दुखाते , कटु शब्दों का प्रयोग नहीं करते !
अपने द्वारा या चेले-चेलियों एजेंटों के द्वारा स्वयं को चमत्कारी महात्मा नहीं सिद्ध करते/कराते हैं !
ये समाज के लिए जीते एवं करते हैं, स्वयं दुःख सहकर भी परदोष ढकते हैं
यथा-"जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा " जिनका ह्रदय दूसरे का दुःख समझ द्रवित हो वह जाता है , माखन से भी अधिक कोमल ह्रदय जिनके होता है!
जैसे -गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्री रामचरितमानस में उल्लेख कर रहे हैं -" संत ह्रदय नवनीत समाना ! कहा कविन्ह पर कहिय न आना !"
"निज परिताप द्रवइ नवनीता ! पर दुःख द्रवइ संत सुपुनीता !!"
अपने वेटे-वेटियों-कुटुम्बियों के लिए धन-माया एकत्र नहीं करते !
"सियाराम मय सब जग जानी भाव" रख 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की प्रार्थना कर , 'तेरी खुसी में ही मेरी खुसी है ' की निराली मस्ती में रहते हैं , ये अपनी पूजा न करा कर , अपने को गुरु न बताकर ,भगवान दत्तात्रेय की भाँति जगत से शिक्षा लेते हैं , जगत को अपने प्यारे करुणानिधान भगवान श्री श्याम-सुन्दर  सीताराम समझ तुलसी दास जी की तरह प्रणाम करते हैं !
"करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी "
मित्रो ,
पाखंडी स्वघोषित गुरुओं-संतों-भक्तों की पूजा-सेवा करना भी पतन का कारक है ! ऐसे लोगों के भाषण-आख्यानों में जाना भी महापाप है, जिसका फल आपको तत्काल , आपके अमूल्य धन-समय की बर्बादी के रूप में मिलता है ! इन कालनेमि सदृश राक्षसों की संगति से आपकी भगवान के प्रति आस्था भी कम होती है ,जोकि परम दुर्भाग्य की शुरुआत है ! ये ढोंगी आपको डरा-धमका कर दान आदि की कहानियों से ठगी करते हैं , आपकी आस्था से खिलबाड़ कर आपको गर्त में डाल स्वयं मलाई खाते हैं , 
ये मायावी ठग बड़े ही मीठे-मीठे वचनों से आपको चूना लगाते हैं !
मेरा निवेदन है कि ऐसे धर्मगुरुओं-नेताओं-पाखंडियों को----
जिन्होंने अपना जमा धन -संपत्ति, जो लोगों को मूर्ख बना-बना कर एकत्रित की है ! स्वयं को ईश्वर का बिशेष प्रतिनिधि घोषित कर पाप कर्म किये हैं ! जिन्हें बिना ऐ.सी. के नींद नहीं आती है ! जिनके घर राज-महल जैसे ऐश्वर्यों से भरे हैं , पर वे इसे कुटिया कह लाज नहीं करते ! इनके पास लक्जरी कारों कि अनगिनित संख्या है ! प्रत्येक शहर में इनके बंगले नुमा आश्रम हैं ! फिर भी ये परम विरक्त हैं ! ये अपने पोज बड़े अंदाज में खिंचाते हैं कि मोडल भी इनसे शिक्षा लेलें  फिर भी ये अकिंचिन हैं ! इन धर्म गुरुओं, नेताओं की बिगडैल औलाद सभी कुत्सित कर्मों में संलग्न है फिर भी इन्हें लोगों को उपदेशित करने में शर्म नहीं आती ! ये 'मुँह में राम बगल में छुरी' रख शिकार करते हैं ! नाच-गा कर विभिन्न ढोंग  कर इनका माफिया राज चलता रहता है ! पैसे को व्याज पर देते हैं , भूमियों को कब्जाते हैं, छोटे-छोटे नावालिग़ वच्चों का शोषण-हत्या इनके लिए मच्छर मारने सदृश है ! फिर भी ये ईश्वर हैं अपने चेलों को सलाह देते हैं कि इनके फोटो कि पूजा ईश्वर कि मूर्ति के पास रखकर ईश्वर से भी पहले की जाय !
 इनको यदि किसी भी नियुक्त दिवस पर सार्वजनिक रूप से धुना जाय तो  वो भारतीयों का शौर्य-दिवस होगा  !
मित्रो, 

ये किसी एक के लिए व्यक्तिगत नहीं ये सभी "भेड की खाल में छुपे भेड़ियों के लिए है " !!
जो मूर्ख जन-मानस का शिकार कर अपना पेट भरते हैं !!

!! हरेकृष्ण-हरिबोल !!
!! राधे-राधे स्वीट राधिका राधे-राधे !!
!! जय माँ भारती !!


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श्रीराधे चहुँ दिसि हा-हा कार !

संकट सत्ता माया नाचे ,

चारों ओर पुकार !!श्रीराधे ०!!

छंद काव्य से छूट चले हैं ,

रस फीके बेकार !!श्रीराधे ० !!

आर्त-दीन से दुनिया रूठी ,

लठ्ठ चले मक्कार !!श्रीराधे ० !!

भयो दिखावो फैशन जग को ,

बिके हाट-बाज़ार !!श्रीराधे ० !!

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,

सूझ नहीं आचार !!श्रीराधे ० !!

नीति-नियम संयम सब भूले ,

स्वार्थ बस लाचार !!श्रीराधे ० !!

सदाचार के कोई न ग्राहक  ,

करे न उच्च विचार !!श्रीराधे ० !!

तृष्णा-क्षुधा रोग सब उलझे ,

सूझे न उपचार !!श्री राधे ० !!

तज के लाज-शर्म बन वैठे,

ज्ञान गढ़ें धिक्कार !!श्रीराधे ० !!

'स्वीटी राधिका' शरण तिहारी,

सुन लीजै ब्रषभानु दुलारी ! 

करहु कृपा मेरी स्वामिनी प्यारी ,

मिट जाएँ अत्याचार !!श्रीराधे ० !!

कीरति कुंवरि लाडिली राधे ,

तेरी जय-जय कार !!श्रीराधे ० !!

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