sweetie radhika radhey-radhey

Saturday, February 19, 2011

धर्म न दूसर सत्य समाना

धर्म न दूसर सत्य समाना
हरेकृष्ण !
मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !
सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !
हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित  धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !
मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है ! 
अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं ! 
तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !
इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत  नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !
उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं  !
जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति  के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !
यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा  , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !
अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !
मित्रो,
यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है ! 
यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"
और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन से प्राप्त होता है !
तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन को अपना आधार वना प्रेम से गायें-
हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !
हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!
जय-जय श्री राधे !!

2 comments:

  1. jay mahakal jay vishwanath !
    jay baidhya nath jay som nath !!
    jay mamleshwar jay rameshwar !
    jay ghrishneshwar kedar nath !!
    jay nageshwar jay trayambakeshwar !
    jay gopeshwar pashupati nath !!
    jay bhuteshwar jay asheshwar !
    jay rangeshwar jay adi nath !!
    jay mahabaleshwar jay mahadev !
    jay panch madeshwar jay gauri nath !!
    jay vishwambhar jay digamvar !
    jay jagat pita aru jagat mat !!
    audhar dani jay ashutosh !
    karunavatar jay bhut nath !!
    jay-jay shambhu-jay-jay shiva ji !
    jay-jay shankar jay uma nath !!
    jay gauri pati kailash vasi !
    jay amar nath jay bhakt nath
    shri radhey -radhey
    har-har mahadev

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  2. *गोविन्द दामोदर स्तोत्रं*

    -राधे-राधे-श्याम सुन्दर-





    करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
    वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥

    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
    जिव्हे पिबस्वा मृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि पादार्पित चित्तवृतिः।
    दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
    पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।
    ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जिह्‍वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
    समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
    देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जिह्‍वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
    आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    त्वामेव याचे मन देहि जिह्‍वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
    वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।
    जिह्‍वे पिबस्वा मृतमेवदेवं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

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    *स्वीट राधिका-राधे-राधे*

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