sweetie radhika radhey-radhey

Thursday, February 3, 2011

देशप्रेम को भूल गए सब निज-निज तृष्णा लाभों में-

 जय भारतमाता 

कायरता बन स्वभाव भारत में ,छायी घोर गुलामी है !
टुकडे-टुकडे किये देश के , झूँठी वीर कहानी है !!
भूतकाल को छोड़ दें तो , खाली हाथ रहेंगे हम ! 
हजारों सालों से पिटना-कटना ही पाएंगे हम !! 
देशप्रेम को भूल गए सब निज-निज तृष्णा लाभों में !
धर्म-कर्म को नष्ट कर दिया , जाति के जंजालों में !!
लालच के वश लुटा दिया है , स्वाभिमान को नालों में !
ठेष लगाई दर्शन-गुरु को , पाखंडों की चालों ने !!  
कोई लुटा आलस में आके , कोई करके दया लुटा गया !
जीत मिली थी समर भूमि में, उसको भी लौटा दिया !!
मूरख हैं हम एक धरा पर , जीत को हार बना दिया !
अपना तीर्थ जो केशरिया था , राक्षस वहाँ वसा दिया !!
श्रीनगर सा वैभव अपना , मूर्खता में गँवा दिया !
कोई एक न दोषी सब दोषी हैं , मौका था जो गँवा दिया !!
यदि सच्चे वीर यहाँ होते तो , तोड़के मुँह गद्दारों के !
राजनीत से दूर फैंकते , तिलक करते रखवालों के !!
हाय ओ भारत ज्ञान भूमि , तुम ही क्यों न कुछ करते हो !
भ्रष्टाचार-भुखमरी जैसी , हायों को क्यूँ सहते हो !!
दूर करो मेरी माँ भारती जयचंदों की भीड़ों को !
बदल के लिख दो उज्जवल-उज्जवल , हार चुकी तकदीरों को !!
पूरे करदो जगदम्बे माँ राम-श्याम और विश्वनाथ के गीतों को !
सुनें मुरली मधुर रटें राम-राम , हर-हर महादेव संगीतों को !!
तोहे करे पुकार मेरी मातृभूमि तेरी बेटी 'स्वीटी' प्यारी !
मेरे पूर्ण मनोरथ कर माता , मेरी माँ भारती सबसे न्यारी !  
'राधे-राधे' स्वीटी राधिका 'राधे-राधे'
मित्रो ,
जैसा आपको पता है कि फरबरी माह चल रहा है , आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण,बाजार में-समाज में कुछ पाश्च्यात्य हवा वह रही है ! वेलेंटाइन जैसे पर्वों का चलन जोरों पर है,जिस पर विभिन्न राजनेता- समाज सुधारक-धर्मं प्रचारक विभिन्न वक्तव्य दे-दे कर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखने की लालसा में,आंधी की तरह गरज-गरज कर समाज को, लोगों को डरा रहे हैं, 
यद्यपि प्रेम इस गर्वित संस्कृति की रग-रग में विद्यमान है ! 
इस फरवरी (माघ मास में ) के साथ ही भारत में भी प्रेमोत्सव के रूप में मदनोत्सव मनाया जाता है !
माता सरस्वती का आशीर्वाद लेकर , 
प्रेम बर्षा होली का आधार स्थापित कर दिया जाता है !
जोकि संपूर्ण विश्व में मनाये जाने वाले किसी भी प्रेमोत्सव से महान है ! 
कोई कहता है कि भारत में वेलेंटाइन को माता-पिता की पूजा कर मनाओ , कोई कहता है मनाने वालों पर डंडे चलाओ !
अरे ! ये कहो, विदेशी आयातित रूप छोड़ अपना महान स्वदेशी स्वरुप वसंत-होली पर्व मनाओ ! 
और विश्व में लिख दो कि "सबसे आगे हैं हिन्दुस्तानी " 
और रही इन भाषण-वक्ताओं की बात तो ये बिल्ले हैं , 
सामने म्याउँ-म्याउँ कह संत बनेंगे , 
मन से तुम्हारी संपत्ति आदि पर डकैती डालने को उत्सुक हैं ! 
 हरेकृष्ण !
कृपया वेलेंटाइन दिवस के नाम पर व्यर्थ में हो-हल्ला न करें !
इसके पक्ष या विपक्ष के गुटों से इसका प्रचार ही होता है !

महान हिन्दू संस्कृति में प्रतिदिन माता-पिता-गुरु के चरण स्पर्श का महान परामर्श पहले से ही है ! कोई नए दिन वो भी १४ फरबरी को बिशेष रूप से इसे आयोजित कर , एक प्रकार से हम १४ फरबरी को महिमा से अलंकृत कर प्रचारित करेंगे ,

कि कोई वेलेंटाइन दिन है जिससे डरकर हम माता-पिता की पूजा करते हैं !
भाइयो, अपने देश में ८०% जन समूह इन वेलेंटाइन दिनों से अनभिज्ञ है, क्यों व्यर्थ में हल्ला कर इनको आगे बढ़ाते हो !
हाँ ,भारतीय संस्कृति कभी भी प्रेम के विपरीत नहीं है ! हम महान आर्य विश्व में दर्शन गुरु हैं ! हमारे यहाँ भी वेलेंटाइन से कहीं आगे , वसंत उत्सव मनाया जाता है ! वसंत अर्थात कामदेव , सीधा अर्थ है काम उत्सव, 'मदनोत्सव' और ये भी माता शारदा की पूजा कर आशीर्वाद से होली तक मनाया जाता है !
मित्रो, होली इस उत्सव की अद्भुत प्रेम बर्षा है ! जब पहले से ही एक महान उत्सव हमारी संस्कृति में है जिससे १००% भारतीय परिचित हैं तो क्यों कर हम किसी आयातित उत्सव में रूचि लेंगे !
मेरी सभी नेताओं-प्रचारकों से विनती है भारतीय जन-मानष स्वयं में जागरुक है , अपना अच्छा- बुरा जानता है !
आप कृपया व्यर्थ में श्रम न करें, अपने घर को सुधारें-अपने आप को सुधारें
  और मित्रो,
हमारी संस्कृति को किसी से खतरा नहीं है , यदि खतरा है तो केवल 
स्वयंभू ढोंगी धर्मं-गुरुओं, नेताओं ,लालची जन-समूहों एवं मूर्ख-अंध अनुयायियों से जो गिद्ध की तरह भोली-भाली जनता  का माँस नोंचते  हैं तथा धर्मं एवं आस्था को घायल करते हैं ! 
 हरेकृष्ण ! 
देखिये समाज में एक गति होती है जो समय के सापेक्ष परिवर्तित होती रहती है, इसे आप गति-शील समाज भी कह सकते हैं , 
जिन समाजों में परिवर्तन दर नहीं होती ,वे समाज गतिहीन समाज कहलाते हैं ! मृत समाज होते हैं !
समाज अपना अच्छा-बुरा स्वयं निर्णय कर सकता है ! समाज के ऊपर अच्छा-बुरा थोपना तालिवानिकरण है ,
जो अंततः समाज को खा जाता है !
हिन्दू धर्मं कभी कट्टर नहीं रहा ! हिन्दू संस्कृति परम उदार है -
यह सर्वत्र "सार -सार को गहि रहे थोथा देहि उड़ाय " नियम से-
शुभ-शुभ एकत्र कर निरर्थक को मल सद्रश फेंक देती है ! 
रही बात वेलेंटाइन की तो इसे माता-पिता के लिए मनाने पर कुछ वढेगा नहीं तथा प्रेमियों के लिए मनाने से कुछ घटेगा नहीं !
और भारतीय एवं पश्च्यात दोंनों जगह मातृ दिवस-पितृ दिवस मनाने का अलग से विधान एवं समय है !
जो प्रेमियों के नाम है उसे प्रेम में ही समर्पित करें !
कैसा होगा यदि घोषित कर दें कि होली केवल अपने माता-पिता से खेलो !
मित्रो ये करो-ये सलाह है -ये बड़ा बुरा है-ये अच्छा है -ये ईश्वर का बिशेष प्रतिनिधि है - ये सब मायिक वाक जाल हैं जिनको लोग रच-रच कर स्वयं की प्रसिद्धि हेतु प्रचार-व्यापार करते हैं ! 
ऐसे लोगों के लिए श्री रामचरितमानस में कहा गया है -
"पर उपदेश कुशल बहुतेरे ! जे आचरहिं ते नर न घनेरे !!" 
इनकी कथनी कुछ और एवं करनी कुछ और है ! 
"ये राम नाम जपना ,पराया माल अपना ! भाव वाले हैं !"
इनके लिए ईश्वर प्रेम या समाज सेवा ऐसा कोई भाव नहीं होता !
मित्रो,
अच्छे व्यक्ति दिखावा नहीं करते , 
उनके लिए प्रचार कोई मायने नहीं रखता ! 
वे शहर-शहर अपने होर्डिंग्स नहीं लगवाते ! 
वो स्त्रियों के समूह अपने पीछे-पीछे लगाकर नहीं घूमते !
चेले-चेलियों की संख्या नहीं बढ़ाते !
सुरक्षा गार्डों के साये में नहीं घूमते ! 
किसी का ह्रदय नहीं दुखाते , कटु शब्दों का प्रयोग नहीं करते !
अपने द्वारा या चेले-चेलियों एजेंटों के द्वारा स्वयं को चमत्कारी महात्मा नहीं सिद्ध करते/कराते हैं !
ये समाज के लिए जीते एवं करते हैं, स्वयं दुःख सहकर भी परदोष ढकते हैं
यथा-"जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा " जिनका ह्रदय दूसरे का दुःख समझ द्रवित हो वह जाता है , माखन से भी अधिक कोमल ह्रदय जिनके होता है!
जैसे -गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्री रामचरितमानस में उल्लेख कर रहे हैं -" संत ह्रदय नवनीत समाना ! कहा कविन्ह पर कहिय न आना !"
"निज परिताप द्रवइ नवनीता ! पर दुःख द्रवइ संत सुपुनीता !!"
अपने वेटे-वेटियों-कुटुम्बियों के लिए धन-माया एकत्र नहीं करते !
"सियाराम मय सब जग जानी भाव" रख 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की प्रार्थना कर , 'तेरी खुसी में ही मेरी खुसी है ' की निराली मस्ती में रहते हैं , ये अपनी पूजा न करा कर , अपने को गुरु न बताकर ,भगवान दत्तात्रेय की भाँति जगत से शिक्षा लेते हैं , जगत को अपने प्यारे करुणानिधान भगवान श्री श्याम-सुन्दर  सीताराम समझ तुलसी दास जी की तरह प्रणाम करते हैं !
"करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी "
मित्रो ,
पाखंडी स्वघोषित गुरुओं-संतों-भक्तों की पूजा-सेवा करना भी पतन का कारक है ! ऐसे लोगों के भाषण-आख्यानों में जाना भी महापाप है, जिसका फल आपको तत्काल , आपके अमूल्य धन-समय की बर्बादी के रूप में मिलता है ! इन कालनेमि सदृश राक्षसों की संगति से आपकी भगवान के प्रति आस्था भी कम होती है ,जोकि परम दुर्भाग्य की शुरुआत है ! ये ढोंगी आपको डरा-धमका कर दान आदि की कहानियों से ठगी करते हैं , आपकी आस्था से खिलबाड़ कर आपको गर्त में डाल स्वयं मलाई खाते हैं , 
ये मायावी ठग बड़े ही मीठे-मीठे वचनों से आपको चूना लगाते हैं !
मेरा निवेदन है कि ऐसे धर्मगुरुओं-नेताओं-पाखंडियों को----
जिन्होंने अपना जमा धन -संपत्ति, जो लोगों को मूर्ख बना-बना कर एकत्रित की है ! स्वयं को ईश्वर का बिशेष प्रतिनिधि घोषित कर पाप कर्म किये हैं ! जिन्हें बिना ऐ.सी. के नींद नहीं आती है ! जिनके घर राज-महल जैसे ऐश्वर्यों से भरे हैं , पर वे इसे कुटिया कह लाज नहीं करते ! इनके पास लक्जरी कारों कि अनगिनित संख्या है ! प्रत्येक शहर में इनके बंगले नुमा आश्रम हैं ! फिर भी ये परम विरक्त हैं ! ये अपने पोज बड़े अंदाज में खिंचाते हैं कि मोडल भी इनसे शिक्षा लेलें  फिर भी ये अकिंचिन हैं ! इन धर्म गुरुओं, नेताओं की बिगडैल औलाद सभी कुत्सित कर्मों में संलग्न है फिर भी इन्हें लोगों को उपदेशित करने में शर्म नहीं आती ! ये 'मुँह में राम बगल में छुरी' रख शिकार करते हैं ! नाच-गा कर विभिन्न ढोंग  कर इनका माफिया राज चलता रहता है ! पैसे को व्याज पर देते हैं , भूमियों को कब्जाते हैं, छोटे-छोटे नावालिग़ वच्चों का शोषण-हत्या इनके लिए मच्छर मारने सदृश है ! फिर भी ये ईश्वर हैं अपने चेलों को सलाह देते हैं कि इनके फोटो कि पूजा ईश्वर कि मूर्ति के पास रखकर ईश्वर से भी पहले की जाय !
 इनको यदि किसी भी नियुक्त दिवस पर सार्वजनिक रूप से धुना जाय तो  वो भारतीयों का शौर्य-दिवस होगा  !
मित्रो, 

ये किसी एक के लिए व्यक्तिगत नहीं ये सभी "भेड की खाल में छुपे भेड़ियों के लिए है " !!
जो मूर्ख जन-मानस का शिकार कर अपना पेट भरते हैं !!

!! हरेकृष्ण-हरिबोल !!
!! राधे-राधे स्वीट राधिका राधे-राधे !!
!! जय माँ भारती !!


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श्रीराधे चहुँ दिसि हा-हा कार !

संकट सत्ता माया नाचे ,

चारों ओर पुकार !!श्रीराधे ०!!

छंद काव्य से छूट चले हैं ,

रस फीके बेकार !!श्रीराधे ० !!

आर्त-दीन से दुनिया रूठी ,

लठ्ठ चले मक्कार !!श्रीराधे ० !!

भयो दिखावो फैशन जग को ,

बिके हाट-बाज़ार !!श्रीराधे ० !!

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,

सूझ नहीं आचार !!श्रीराधे ० !!

नीति-नियम संयम सब भूले ,

स्वार्थ बस लाचार !!श्रीराधे ० !!

सदाचार के कोई न ग्राहक  ,

करे न उच्च विचार !!श्रीराधे ० !!

तृष्णा-क्षुधा रोग सब उलझे ,

सूझे न उपचार !!श्री राधे ० !!

तज के लाज-शर्म बन वैठे,

ज्ञान गढ़ें धिक्कार !!श्रीराधे ० !!

'स्वीटी राधिका' शरण तिहारी,

सुन लीजै ब्रषभानु दुलारी ! 

करहु कृपा मेरी स्वामिनी प्यारी ,

मिट जाएँ अत्याचार !!श्रीराधे ० !!

कीरति कुंवरि लाडिली राधे ,

तेरी जय-जय कार !!श्रीराधे ० !!

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11 comments:

  1. धर्म न दूसर सत्य समाना

    हरेकृष्ण !

    मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !

    सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !

    हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !

    मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है !

    अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं !

    तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !

    इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !

    उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं !

    जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !

    यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !

    अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !

    मित्रो,

    यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है !

    यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"

    और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन से प्राप्त होता है !

    तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन को अपना आधार वना प्रेम से गायें-

    हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !

    हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!

    जय-जय श्री राधे !!

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  2. श्रीराधे ,

    मेरी मातृभूमि भारत माता सदैव महान थी महान है और महान रहेगी ,

    यही कारण था कि घोर पाकिस्तानबादी इकवाल ने लिखा "कुछ वात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी -सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा " यहाँ अप्रतक्ष्य रूप से इकवाल याद कर रहा है कि इस हिंदुस्तान ( हिंदुस्तान का व्यापक अर्थ है , भारत देश, भारतीय संस्कृति एवं विरासत ) को हजारों सालों से तुर्क-मुस्लिम-अफगानों-अदि आक्रान्ताओं ने मारा-पीटा परन्तु यह पुनः -पुनः कभी समाज में भक्ति रस बर्षाकर कभी शिवाजी,छत्रसाल,महाराणा प्रताप जैसे राष्ट्र-धर्म सुपुत्रों के द्वारा कभी मालवीयजी-हेडगेवारजी-गुरूजी-दीनदयालजी जैसे महानुभावों कि सेवा प्रदान कर अपनी महत्ता सिद्ध करता है ! मेरा कथन है कि इन सब वीर-वलिदानी-राष्ट्र-धर्म सेवकों से स्वाभिमान सीख , वर्तमान -भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार-लालच-राष्ट्र-धर्म उदासीनता से जीतें कायरता त्यागें !

    मेरा ब्लॉग " my country-my wishes " radhika-gautam.blogspot.com में कायरता कहने का आशय केवल इतना है कि जब मोहम्मद गौरी-गजनी-तैमूर लंग आदि विदेशी-विधर्मी आक्रान्ता-लुटेरे भारत में डाका-हत्या एवं अधर्म प्रचार के लिए आये थे ! तव क्यों कर भारतीय जन-मानस ने अपने अदम्य साहस का परिचय देकर इनका मुंह नहीं तोडा था ? क्यों इनको गधे पर विठा जूतम-मार नहीं की ? अपितु स्वयं को वचाने में दूसरों को कटता छोड़ गए थे ! अरे उस समय यदि प्रत्येक भारत वासी एक-एक पत्थर हाथ में लेता तो इन दुष्टों का लहू वहकर काबुल-अरब-बगदाद आदि में हमारी वीरता का सन्देश देता !

    मित्रो, मेरा भारत 'सर्वे भवन्तु सुखिनः ' 'वसुधैव-कुटुम्बम' का आदरणीय महान विश्व सन्देश धारण किये है अतः किसी को न सताना किसी पर आक्रमण न करना उचित है परन्तु आत्मरक्षा हेतु आक्रान्ता-अधर्मियों का नाश हेतु मेरी भगवद गीता महाभारत हेतु प्रतिबद्ध है , यहाँ आत्मरक्षार्थ-धर्मरक्षार्थ-राष्ट्ररक्षार्थ यदि कोई युद्ध छोड़ किसी अन्य में मन देगा तो उसे मेरे भगवान श्री कृष्ण "कापर्न्य दोष " कह कायर ही कहते हैं !

    हाँ मेरी भारत-भूमि का अहो भाग्य है कि यहाँ ,

    "जब-जब होई धरम के हानी ! बाढहिं असुर महा अभिमानी !!"

    "तव-तव धरि प्रभु विविध शरीरा ! हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा !!"

    निजजनों की रक्षा हेतु भक्तवत्सल भगवान श्रीराम ,श्रीकृष्ण स्वरूप में प्रगट हो दुष्टों का विनाश करते हैं !

    !राधे-राधे !

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  3. श्रीजी की कृपा-भक्ति के लिए निम्नांकित लिंक से क्लिक कर ब्लॉग से अभी जुड़ें/फोलो करें
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    श्रीराधे चहुँ दिसि हा-हा कार !
    संकट सत्ता माया नाचे ,
    चारों ओर पुकार !!श्रीराधे ०!!
    छंद काव्य से छूट चले हैं ,
    रस फीके बेकार !!श्रीराधे ० !!
    आर्त-दीन से दुनिया रूठी ,
    लठ्ठ चले मक्कार !!श्रीराधे ० !!
    भयो दिखावो फैशन जग को ,
    बिके हाट-बाज़ार !!श्रीराधे ० !!
    पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,
    सूझ नहीं आचार !!श्रीराधे ० !!
    नीति-नियम संयम सब भूले ,
    स्वार्थ बस लाचार !!श्रीराधे ० !!
    सदाचार के कोई न ग्राहक ,
    करे न उच्च विचार !!श्रीराधे ० !!
    तृष्णा-क्षुधा रोग सब उलझे ,
    सूझे न उपचार !!श्री राधे ० !!
    तज के लाज-शर्म बन वैठे,
    ज्ञान गढ़ें धिक्कार !!श्रीराधे ० !!
    'स्वीटी राधिका' शरण तिहारी,
    सुन लीजै ब्रषभानु दुलारी !
    करहु कृपा मेरी स्वामिनी प्यारी ,
    मिट जाएँ अत्याचार !!श्रीराधे ० !!
    कीरति कुंवरि लाडिली राधे ,
    तेरी जय-जय कार !!श्रीराधे ० !!

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  4. जिस हिन्दू ने नभ में जाकर नक्षत्रो को दी है संज्ञा ,
    जिसने हिमगिरी का वक्ष चीर भू को दी है पावन गंगा ,
    जिसने सागर की छाती पर पाषाडॉ को तैराया है ,
    हर वर्त्तमान की पीड़ा को जिसने इतिहास बनाया है ,
    जिसके आर्यों ने घोष किया कृण्वन्तो विश्वमार्यम का,
    जिसका गौरव कम कर न सकी रावन की स्वर्णमयी लंका ,
    जिसके यज्ञो का एक हव्य सौ सौ पुत्रो का जनक रहा ,
    जिसके आँगन में भयाक्रांत धनपति बरसाता कनक रहा ,
    जिसके पावन बलीस्थ तन की रचना तन दे दधिची ने की ,
    राघव ने वन वन भटक भटक जिस तन में प्राण प्रतिस्ठा की ,,
    जौहर कुंडो में कूद कूद सतियो ने जिससे दिया सत्व ,
    गुरुओ के गुरुपुत्रो ने चिरबलिदानी भर दिया तत्त्व ,
    वह शाश्वत हिन्दू जीवन क्या स्मरणीय मात्र रह जाएगा ?
    इसकी पावन गंगा का जल क्या नालो में बह जाएगा ?
    इसके गंगाधर शिवशंकर क्या ले समाधी सो जायेंगे ?
    इसके पुष्कर इसके प्रयाग क्या गर्त मात्र हो जायेंगे ?
    यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो फिर तुमको जागना होगा ,
    हिन्दू रास्ट्र का बिगुल बजाकर इस दानव दल को दलना होगा
    मै हिन्दू हूँ,मै हिंदू हूँ. हिन्दुस्तान हमारा है
    जन्मभूमि जननी का कण-कण हमें स्वर्ग से प्यारा है.
    कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है.
    हिन्दुस्तान हमारा है. हमें जान से प्यारा है

    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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  5. जब चौराहे पर हत्यारे महिमा मंडित होते हो
    भारत माँ की मर्यादा के मंज़र खंडित होते हो
    जब भारत विरोधी नारे गूंजे गुल्मर्गा की गलियों में
    शिमला समझौता जलाता हो बन्दूको की नालियों में
    तब केवल आवश्यकता है हिम्मत की खुद्दारी की
    दिल्ली केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैयारी की
    सेना को आदेश थमा दो घाटी गैर नहीं होगी
    जहाँ तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी
    जिनको भारत की धरती ना भाति हो
    भारत के झंडे से बदबू आती हो
    जिन लोगो ने माँ का आंचल फाड़ा हो
    दूध भरे सेने में चाकू गडा हो
    हम उन सब को फाँसी के तख्ते पर लटका कर छोड़ेगें
    हम समझौतों की चादर को और नहीं अब ओढ़ेगें


    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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  6. भूखे इंसान के पास देश भक्ति कहां से आयेगी,
    रोटी की तलाश में भावना कब तक जिंदा रह पायेगी।
    पत्थर और लोहे से भरे शहर भले देश दिखलाते रहो
    महंगाई वह राक्षसी है जो देशभक्ति को कुचल जायेगी।
    ———-
    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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  7. माँ कि सेवा करते-करते बैठ गए जो आधे पथ पर,
    कायरतावश या मोहित हो चल न पा रहे जो निज पथ पर,
    ऐसे भीरु से व्याकुल को गीता का पाठ सुना कर,
    डरना क्या है अरे कर्म से दुनिया को ललकार सुना कर,
    साहस आत्मिक बल कि उनमें ज्योति जगा दें,

    फिर सोया कर्त्तव्य जगा दें.........


    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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  8. गैरो को केशर की क्यारी में ईद मनाने ना देंगें
    औरो के झंडे को भारत में लहराने ना देंगें
    हम भारत के वीर यहाँ माता का चीर नहीं देंगें
    लाशो से धरा पाट देंगें पर काश्मीर नहीं देंगें

    जिनके बल पर फूल रहे हो उनको ये समझा देना
    सन पैसठ की बर्बादी का उनको चित्र दिखा देना
    कह देना भारत के वीरो की कभी साँझ नहीं होती
    जो बेटो की बलि दे दे वो माता बाँझ नहीं होती

    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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  9. हल्दी घाटी की रज का मै तिलक लगाया करता हूँ
    अरि शोडित की लाली से मै आंख सजाया करता हूँ
    भगत सिंह का साफा हूँ मै झाँसी रानी का सेनानी
    मै जौहर की भीषण ज्वाला बाजु मेरे पाषाणी
    कालि दास का अमर काव्य हूँ मै तुलसी की रामायण
    अमृत वाणी हूँ गीता की घर घर होता परायण
    मै भूषण की शिवा भवानी आला का हुंकारा हूँ
    सूर दास का मधुर गीत मै मीरा का एक तारा हूँ

    वरदाई की अमर कथा हूँ रण गर्जन गंभीर हूँ
    मेरा परिचय इतना की मै भारत की तस्वीर हूँ
    भारत की तस्वीर हूँ!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    माँ भारती के श्री चरणों में समर्पित
    नमः पार्वती पतेः हर हर महादेव

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  10. हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत
    हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत !!

    जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे
    तेरी जनम जनम भर हम वंदना करेंगे
    तेरे लिये जियेंगे, तेरे लिये मरेंगे
    तेरे लिये जनम भर, हम सधना करेंगे
    यह देश है हमारा, ललकार कर कहेंगे
    इस देश के बिना हम, जीवित नही रहेंगे

    "अभियान भारतीय" का हम वरण करेगे
    हम अर्चना करेंगे हम सर्जना करेंगें
    हम अर्चना करेंगे………………….....................
    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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  11. राष्ट्र के शृंगार! मेरे देश के साकार सपनों!
    देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।
    जिन शहीदों के लहू से लहलहाया चमन अपना
    उन वतन के लाड़लों की
    याद मुर्झाने न देना।
    देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।


    तुम न समझो, देश की स्वाधीनता यों ही मिली है,
    हर कली इस बाग़ की, कुछ खून पीकर ही खिली है।
    मस्त सौरभ, रूप या जो रंग फूलों को मिला है,
    यह शहीदों के उबलते खून का ही सिलसिला है।
    बिछ गए वे नींव में, दीवार के नीचे गड़े हैं,
    महल अपने, शहीदों की छातियों पर ही खड़े हैं।
    नींव के पत्थर तुम्हें सौगंध अपनी दे रहे हैं
    जो धरोहर दी तुम्हें,
    वह हाथ से जाने न देना।
    देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।।


    देश के भूगोल पर जब भेड़िये ललचा रहें हो
    देश के इतिहास को जब देशद्रोही खा रहे हों
    देश का कल्याण गहरी सिसकियाँ जब भर रहा हो
    आग-यौवन के धनी! तुम खिड़कियाँ शीशे न तोड़ो,
    भेड़ियों के दाँत तोड़ो, गरदनें उनकी मरोड़ो।
    जो विरासत में मिला वह, खून तुमसे कह रहा है-
    सिंह की खेती
    किसी भी स्यार को खाने न देना।
    देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।।


    तुम युवक हो, काल को भी काल से दिखते रहे हो,
    देश का सौभाग्य अपने खून से लिखते रहे हो।
    ज्वाल की, भूचाल की साकार परिभाषा तुम्हीं हो,
    देश की समृद्धि की सबसे बड़ी आशा तुम्हीं हो।
    ठान लोगे तुम अगर, युग को नई तस्वीर दोगे,
    गर्जना से शत्रुओं के तुम कलेजे चीर दोगे।
    दाँव पर गौरव लगे तो शीश दे देना विहँस कर,
    देश के सम्मान पर
    काली घटा छाने न देना।
    देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।


    वह जवानी, जो कि जीना और मरना जानती है,
    गर्भ में ज्वालामुखी के जो उतरना जानती है।
    बाहुओं के ज़ोर से पर्वत जवानी ठेलती है,
    मौत के हैं खेल जितने भी, जवानी खेलती है।
    नाश को निर्माण के पथ पर जवानी मोड़ती है,
    वह समय की हर शिला पर चिह्न अपने छोड़ती है।
    देश का उत्थान तुमसे माँगता है नौजवानों!
    दहकते बलिदान के अंगार
    कजलाने न देना।
    देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।।


    ॐ नमः पार्वती पत्ये: हर हर महादेव

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