sweetie radhika radhey-radhey

Sunday, February 20, 2011

तीन लोक ते मथुरा न्यारी

आश्चर्य- मथुरा में एक mr. एवं miss . मथुरा  ,
के नाम से प्रतियोगिता आयोजन !
जिसके जजों द्वारा चयन करते समय बारम्बार खेद व्यक्त करना ,
कि प्रतियोगिता मथुरा में है ,
परन्तु , सब-अधिकांश प्रतिभागी वेस्टर्न प्रजेंटेसन दे रहे हैं !
उनको मथुरा शैली - मथुरा कल्चर का कोई भान नहीं !
मित्रो, यह बड़ा कडुवा सत्य है कि इस  -
"तीन लोक ते मथुरा न्यारी संस्कृति" में 
जोकि बड़े-बड़े आघातों-संकटों के उपरांत भी 
अपने स्वरुप से अविचिलित रही ,
पर आज पश्चिम की भोग प्रधान संस्कृति का आधिपत्य हो गया है !
जहाँ 'सरल-जीवन - उच्च-विचार' केन्द्रित थे 
वहां अधिकांश वर्ग में "दिखावटी-जीवन - ओछे-विचार" संकेंद्रित हैं ! जो संस्कृति दुष्ट तुर्क-मुग़ल आक्रान्ताओं के आक्रमण से नहीं डिगी, जिसको बिट्रिश परतंत्रता की जंजीरें नहीं बांधसकीं वो अपने ही जन-मानस के नैतिक-आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पतन से व्यग्र है !
सबसे पहले मेरा सभी माननीय प्रतियोगिता जजों-(चयन कर्ताओं जिन्हें हम टेलीविजन पर देख रहे हैं)  से अनुरोध है ( मेरा मानना है कि सभी जज-चयनकर्ता , ब्रज संस्कृति-धरोहर के संवाहक हैं, उनका ब्रज-वसुंधरा के प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान रहा है एवं वर्त्तमान में भी वे इसी दिशा में संलग्न हैं और श्रीजी की कृपा से आगे भी ब्रजसेवा करेंगे  ) कि इस प्रतियोगिता का नाम mr. एवं miss. mathura  न रखकर , जोकि ब्रज-सांस्कृतिक रूप से अनुचित है , ब्रजधाम में सखी एवं ग्वाल-वाल होते हैं ! न कि पश्चिमी मि.,मिस. यदि प्रतियोगिता नाम ही अन्य संस्कृति का होगा तो कैसे प्रतिभागी अन्य संस्कृति को न दर्शायेंगे ! और भाइयो हमारे ब्रज में केवल नन्द-लाल लीलाधारी भगवान श्री कृष्ण ही पूर्ण पुरुष हैं (मि. हैं ) यहाँ किसी और को मि. कहना नितांत अनुचित है  !  कितना अच्छा हो यदि प्रतियोगिता नाम ग्वाल-वाल ब्रज मंडल एवं सखी-सहेली ब्रज मंडल हो जोकि सभी प्रकार से व्यापक द्रष्टिकोण लिए है ,एवं ब्रज-भूमि संस्कृति की संवाहक -पोषक है ! केवल मथुरा नाम रखना संकीर्ण है 

जोकि कंस के महोत्सव की ही याद दिलाता है !
राधे-राधे
जय श्री कृष्ण
जय ब्रज वसुंधरा

3 comments:

  1. यहाँ पर, मैं किसी की आलोचना के नहीं लिख रही अपितु, अपनी ओर से अपने नगर-क्षेत्र में होने वाली एक गतिविधि के लिए विचार रख रही हूँ कि किस प्रकार इस सुन्दर प्रयास को सुन्दरतम, दिव्य एवं अतुलनीय बनाया जा सके ! राधे-राधे !

    ReplyDelete
  2. श्रीजी की कृपा-भक्ति के लिए निम्नांकित लिंक से क्लिक कर ब्लॉग से अभी जुड़ें/फोलो करें
    sweetieradhe.blogspot.com
    श्रीराधे चहुँ दिसि हा-हा कार !
    संकट सत्ता माया नाचे ,
    चारों ओर पुकार !!श्रीराधे ०!!
    छंद काव्य से छूट चले हैं ,
    रस फीके बेकार !!श्रीराधे ० !!
    आर्त-दीन से दुनिया रूठी ,
    लठ्ठ चले मक्कार !!श्रीराधे ० !!
    भयो दिखावो फैशन जग को ,
    बिके हाट-बाज़ार !!श्रीराधे ० !!
    पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,
    सूझ नहीं आचार !!श्रीराधे ० !!
    नीति-नियम संयम सब भूले ,
    स्वार्थ बस लाचार !!श्रीराधे ० !!
    सदाचार के कोई न ग्राहक ,
    करे न उच्च विचार !!श्रीराधे ० !!
    तृष्णा-क्षुधा रोग सब उलझे ,
    सूझे न उपचार !!श्री राधे ० !!
    तज के लाज-शर्म बन वैठे,
    ज्ञान गढ़ें धिक्कार !!श्रीराधे ० !!
    'स्वीटी राधिका' शरण तिहारी,
    सुन लीजै ब्रषभानु दुलारी !
    करहु कृपा मेरी स्वामिनी प्यारी ,
    मिट जाएँ अत्याचार !!श्रीराधे ० !!
    कीरति कुंवरि लाडिली राधे ,
    तेरी जय-जय कार !!श्रीराधे ० !!

    ReplyDelete
  3. *गोविन्द दामोदर स्तोत्रं*

    -राधे-राधे-श्याम सुन्दर-





    करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
    वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥

    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
    जिव्हे पिबस्वा मृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि पादार्पित चित्तवृतिः।
    दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
    पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।
    ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जिह्‍वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
    समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
    देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    जिह्‍वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
    आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    त्वामेव याचे मन देहि जिह्‍वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
    वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।
    जिह्‍वे पिबस्वा मृतमेवदेवं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

    *स्वीट राधिका-राधे-राधे*

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

    ReplyDelete