sweetie radhika radhey-radhey

Friday, August 19, 2011

एक स्त्री का स्वप्न और मर्द की सोच


SWEETIE
'मैं सोचती हूँ एक वक्त ऐसा भी आएगा, जब आदमी औरत के पीछे खड़ा नजर आएगा। ट्रक पर सामान लादने से लेकर हाथी का महावत बनने तक हर काम में औरतों का प्रभुत्व होना चाहिए। आदमी को घर में रुककर खाना बनाना चाहिए और जब स्त्रियाँ काम से लौटें तो उन्हें गोद में बच्चे लिए उनके लिए घर के दरवाजे खोलने चाहिए।' 
(केरल में स्थानीय निकायों के चुनावों से एक दिन पहले एक स्थानीय अखबार में एक महिला के उद्गार) 

जाहिर है कि किसी भी स्त्री का यह एक स्वप्न हो सकता है कि वह पुरुष के बराबर ही नहीं, उससे आगे खड़ी दिखाई दे। समाज में ऐसी कौन-सी स्त्री होगी जिसके मन में कभी यह न आया हो कि पुरुष भी वे सारे काम करें जिन्हें स्त्रियों के काम बताकर पुरुष निर्द्वंद्व घूमते फिरते रहते हैं? आखिर घर संभालना और बच्चे पालना सिर्फ स्त्री के ही काम क्यों हों?

केरल की स्त्री का यह स्वप्न नितांत स्वाभाविक और मानवीय है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह स्वप्न एक दिन सच भी साबित हो जाए। पश्चिमी यूरोप के अनेक देशों में पुरुष घर के काम में पूरा हाथ बँटाते हैं। वे बच्चे पालते हैं, उनके डायपर या पोतड़े बदलते हैं, उनके लिए दूध की बोतल तैयार करते हैं और हर जिम्मेदारी निभाते हैं। कुछ देशों में तो पिताओं को भी प्रसूति सरीखा अवकाश मिलता है। 

केरल की एक स्त्री अगर आज अपने लिए ऐसा स्वप्न देख रही है, तो उसके पीछे कुछ कारण हैं। केरल में पंचायतों के चुनाव हो रहे हैं और इन चुनावों में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं। महिलाएँ 50 प्रतिशत से भी ज्यादा सीटों पर जीत कर आएँगी क्योंकि अनेक सामान्य वर्ग की सीटों पर भी उनकी जीत की प्रबल संभावना है। केरल में योजनाओं के मद का एक तिहाई पैसा राज्य सरकार स्थानीय निकायों को उपलब्ध कराती है। 

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स्थानीय निकायों में अपना प्रभुत्व कायम होने के बाद महिलाएँ इस पैसे को खर्च करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएँगी। यह सही है कि केरल रातोंरात स्त्रियों के लिए स्वर्ग नहीं बन जाएगा लेकिन इतना जरूर माना जा रहा है कि इससे केरल की आम स्त्री का सशक्तीकरण होगा और समाज में उसे उस तरह के लिंग भेद का सामना नहीं करना पड़ेगा जिसका उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश आदि में आमतौर पर करना पड़ता है। 

इन राज्यों में आज भी कन्याओं को गर्भ में ही मार दिया जाता है। यही कारण है कि इन राज्यों में प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम है। यह अनुपात गड़बड़ाने से समाज में एक अलग तरह का असंतुलन पैदा हो गया है। इसका खामियाजा भी स्त्री जाति को ही भुगतना पड़ रहा है। हरियाणा और पंजाब में स्त्रियों की कमी होने से पिछले वर्षों में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त के समाचार भी सुनने में आए थे। यह ठीक है कि समय के साथ समाज में कुछ प्रगतिशील बदलाव भी हुए हैं, लेकिन आज भी अनेक जगह स्त्री को एक वस्तु की तरह देखा और समझा जाता है। 

कृषि आधारित समाजों में प्रायः हर परिवार की कामना पुत्र पाने की होती थी। माना जाता था कि पुत्र से ही वंश आगे चलेगा और खेतिहर कामों आदि में पुत्र ही ज्यादा उपयोगी होगा। यह क्या कम चौंकाने वाली बात है कि भारतीय परंपरा में धन और यश के साथ पुत्र की एषणा या कामना का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। याद नहीं पड़ता कि किसी राजा ने पुत्री की कामना से कोई यज्ञ आदि किया हो। 

अभी हाल ही में मुझे यह जानकर ताज्जुब हुआ कि मेरे एक परिचित पुत्र की चाह में अपनी पत्नी को लेकर बैंकाक गए थे। उनके पहले से एक लड़की है। थोड़े दिनों बाद उनके लड़का भी हो गया। बताया गया कि उन्होंने बैंकाक के एक अस्पताल में आईवीएफ तकनीक से अपनी पत्नी को गर्भधारण कराया। 

उन्हें कुछ दिन बैंकाक में रहना पड़ा और इस पर लगभग 5 लाख रुपए का खर्च आया। मेरे परिचित एक छोटे-मोटे उद्योगपति हैं मगर आज के युग में भी जब महिलाएँ बड़े-बड़े बिजनेस संभाल रही हैं उन्हें आगे चलकर अपने कारोबार के लिए एक अदद पुत्र ही चाहिए। तो सामंतवादी समाजों के दिन लदने और प्रगति और विकास की रोशनी आने के बावजूद हमारे समाज में पुत्रेषणा कायम है। 

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मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने हाल ही में चीन के बारे में एक समाचार पढ़ा। चीन ने बड़े प्रयत्न से समाजवादी समाज बनाया था। यह अलग बात है कि बाद में उसका विचलन पूंजीवादी रास्ते के रूप में भी देखने को मिला। चीन में एक परिवार-एक संतान की नीति का पालन कराया जाता है क्योंकि राज्य को लगता है कि बढ़ती आबादी को न रोका गया तो एक दिन संसाधनों की कमी हो जाएगी। 

खबर में बताया गया है कि एक गर्भवती चीनी महिला को परिवार कल्याण विभाग जबरदस्ती पकड़ कर ले गए और 8 महीने के उसके शिशु का मारपीट कर गर्भपात करा दिया। इस महिला के पहले से एक संतान थी-नौ बरस की बच्ची। अब वह एक लड़का चाहती थी। चीन में दूसरी औलाद पैदा करने वाले से वैसे ही कई रियायतें छीन ली जाती हैं मगर यहाँ तो राज्य ने जुल्मोसितम की हद ही कर दी। चीन में मीडिया पर सरकार का नियंत्रण है, फिर भी वहाँ के लोग इंटरनेट पर इस घटना का वर्णन पढ़ रहे हैं और उत्तेजित भी हैं। 

जो भी हो यह सवाल अपनी जगह है कि हमारे परिवारों को आज भी लड़का ही क्यों चाहिए? लड़की पैदा करने वाली स्त्री हमारे समाज में आज भी कई बार उपेक्षा और पारिवारिक नफरत का शिकार होती है, जैसे लड़की पैदा करने का दोष उसी का हो। 

तो क्या यह माना जाए कि हमारे सामंतवादी सोच आज भी जिंदा है और प्रगति और विकास की रोशनी खुद पथरा गई है? क्या हमारे यहाँ बड़े-बड़े पदों पर विराजमान स्त्रियों का सिर्फ प्रतीकात्मक महत्व ही है और उनके प्रति समाज के नजरिए में कोई बड़ा गुणात्मक बदलाव नहीं आया है?

5 comments:

  1. हे विघ्नहर्ता
    नहीं खरीदा इस बार
    सीजन का नया छाता
    पुराना ही चल रहा है
    वह भी सूखा ही रहता

    नहीं पड़े इस बार
    सड़कों पर बड़े बड़े गढ्ढे
    पानी भरने के कारण
    कहीं भी लोग नहीं अटके

    नहीं रुकी इस बार
    पश्चिम या मध्य की लोकल
    नहीं ठहरे लोग प्लैट्फ़ार्म पर
    उनके हाल न हुए बेहाल

    नहीं छपी इस बार
    “जनजीवन ठप्प” की खबर
    अखबारों पर छाया था
    सूखे की खबरों का असर

    नहीं रद्द हुईं इस बार
    एयरपोर्ट से कोई उड़ान
    जब भी ऊपर देखो
    साफ़ ही दिखता था आसमान

    नहीं धीमी हुई इस बार
    मुम्बई की तेज रफ़्तार
    आई ही नहीं उसे रोकने
    कोई बारिश की तेज बौछार

    लगता था हम मुम्बईकरों को
    बारिश का आना एक विघ्न
    अपने मतलब के चलते
    हम प्रकृति से हुए कृतघ्न

    हे गणेश जी
    हो तो तुम विघ्नहरता
    पर इस बार मे तुमसे
    यह बिनती करता

    बरसने दो जोरों से
    मिट जाए पानी का प्रश्न
    आने दो हमारे जीवन में
    इस बारिश का विघ्न
    खुशी की बात है कि गणेश जी ने बिनती सुन ली और अपने आशीर्वादों की बौछार हमारे मुम्बई शहर पर कर दी। धन्यवाद गणेश जी ,ऐसा ही बाकी देश पर भी कर देना।

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  2. नारी तू नारायणी

    बाबुल का छोटा सा अँगना
    मईया के आँचल की छइयां;
    भैया की प्यारी सी बहना
    सखियों संग खेली थी गुडिया;

    अब ये तेरी पहचान नहीं,
    चल उठ अपनी पहचान बना

    अपने पिया की प्रेयसी तू
    उनके घर की तू अन्नपूर्णा;
    रक्त, दूध और ममता से
    उनके वंश को सिंचित करना;

    इन गौरवमय कर्मों से,
    अपने परिचय को महान बना.

    तू शकुन्तला है जिसका पुत्र
    शेर संग खेला करता था;
    तू लक्ष्मीबाई झांसी की
    जिससे फिरंगी डरता था;

    अपने अंदर की शक्ति को,
    मुक्ति का आह्वान बना.

    युग प्रवर्तक जीसस की
    तू ही है माता मरियम;
    तू ही कल्पना चावला है
    तू ही है सुनीता विलियम;

    इनमें अपना प्रतिबिम्ब देख,
    इनको अपना प्रतिमान बना.

    फ्लोरेंस और टेरेसा की तरह
    सेवा भी तेरा कर्म है;
    पर अपने अस्तित्व की रक्षा
    करना तेरा ही धर्म है;

    अपने अश्रु को पोंछ डाल,
    क्रंदन को आह्वान बना.

    अब न कोई भ्रूणहत्या हो
    न बेटी कही जलाई जाए;
    बारों में बाजारों में
    न बहना कोई नचाई जाये;

    स्त्री जाति में तेरा जन्म,
    स्वयं के लिए अभिमान बना.

    नव चेतना का संचार कर
    दृढ प्रतिज्ञता के ध्वजा तले;
    अबला नहीं तू ज्वाला बन
    ज्योत से ज्योत मशाल जले;

    नारी तू नारायणी ,
    हर रूप को एक वरदान बना.

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  3. Success And Failure

    Delicate moment
    Saw you again
    Leap year summer
    Presence drew in
    Flies of success
    Squandered about
    Ritual fashion
    Leaving no doubt
    You were a hit
    Plain to see
    Busy boulevard
    Hidden street
    I prayed lightly
    Weaved my path
    Raise no question
    How I survived
    The aftermath
    But I see no reason to covet
    Cause I'm just thinking
    It all seems to amusing
    Failure and success
    Laugh the day
    Meet again
    End up on the park bench
    Exactly where I'm at now
    Unnoticed
    Wonder how
    Bargained your way
    Packs that bleed you
    No thoughts
    What they've made you
    Success has sewn
    A hand to your back
    Paid what price
    For the path
    We traveled
    But I see no reason to covet
    Cause I'm just thinking
    It all seems to amusing
    Failure and success
    Success and failure
    Failure and success
    Success and failure
    Failure and success
    Success and failure

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  4. Daughter

    You and I can see what's going wrong
    We know we don't like it going wrong
    Daughter can you have sons for yourself
    Daughter can you have some for yourself

    All your whiskered friends their wings and life
    Who knows what 'o' ever reason why
    Daughter can you have sons for yourself
    Daughter can you have some for yourself

    Listen to the sounds of lowry pride
    Seen her in the truth within her life
    Daughter can you have sons for yourself
    Daughter can you have some for yourself

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  5. जांच किये बिना किसी को मित्र न बनायें-हिन्दी लेख (mitrata divas or friendship day par vishesh hindi likh)

    देश में पश्चिमी सभ्यता से ओतप्रोत कथित सभ्रांत समाज आज मित्रता दिवस मना रहा है। आजकल पश्चिमी फैशन के आधार पर मातृ दिवस, पितृ दिवस, इष्ट दिवस, तथा प्रेम दिवस भी मनाये जाने लगे हैं। अब यह कहना कठिन है कि यह पश्चिमी फैशन का प्रतीक है या ईसाई सभ्यता का! संभवत हमारे प्रचार माध्यम अपनी व्यवसायिक मजबूरियों के चलते इसे किसी धर्म से जोड़ने से बचते हुए इसे फैशन और कथित नयी सभ्यता का प्रतीक बताते हैं ताकि उनको विज्ञापन प्रदान करने वाले बाज़ार के उत्पाद खरीदने के लिये ग्राहक जुटाये जा सकें।
    भारतीय समाज बहुत भावना प्रधान है इसलिये यहां विचारधारा भी फैशन बनाकर बेची जाती है। रिश्तों के लेकर पूर्वी समाज बहुत भावुक होता है इसलिये यहां के बाज़ार ने सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के नाम पर लोगों की जेब ढीली करने के लिये-चीन, जापान, मलेशिया, पाकिस्तान तथा भारत भी इसमें शामिल हैं-ऐसे रिश्तों का हर साल भुनाने के लिये अनेक तरह के प्रायोजित प्रयास हर जारी कर लिये हैं। समाचार पत्र पत्रिकायें, टीवी चैनल तथा रेडियो-जो कि अंततः बाज़ार के भौंपू की तरह काम करते हैं-इसके लिये बाकायदा उनकी सहायता करते हैं क्योंकि अंततः विज्ञापन का आधार तो उत्पादों के बिकना ही है।
    पश्चिमी समाज हमेशा दिग्भ्रमित रहा है-इसका प्रमाण यह है कि वहां भारतीय अध्यात्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है-इसलिये वहां उन रिश्तों को पवित्र बनाने के प्रयास हमेशा किय जाते रहे हैं क्योंकि वहां इन रिश्तों की पवित्रता और अनिवार्यता समझाने के लिये कोई अध्यात्मिक प्रयास नहीं हुए हैं जिनको पूर्वी समाज अपने धर्म के आधार पर सामाजिक और पारिवारिक जीवन के प्रतिदिन का भाग मानता है। इसे हम यूं कह सकते हैं कि भले ही आधुनिक विज्ञान की वजह से पश्चिमी समाज सभ्य कहा जाता है पर मानवीय संवेदनाओं की जहां तक बात है पूर्वी समाज पहले से ही जीवंत और सभ्य है और पश्चिमी समाज अब उससे सीख रहा है जबकि हम उनके सतही उत्सवों को अपने जीवन का भाग बनाना चाहते हैं।
    मित्र की जीवन में कितनी महिमा है इसका गुणगान आज किया जा रहा है पर हमारे अध्यात्मिक संत इस बात को तो पहले ही कह गये हैं। संत कबीर कहते हैं कि
    ‘‘कपटी मित्र न कीजिए, पेट पैठि बुधि लेत।
    आगे राह दिखाय के, पीछे धक्का देति’’
    कपटी आदमी से मित्रता कभी न कीजिये क्योंकि वह पहले पेट में घुस कर सभी भेद जान लेता है और फिर आगे की राह दिखाकर पीछे से धक्का देता है। सच बात तो यह है कि मित्र ही मनुष्य को उबारता है और डुबोता है इसलिये अपने मित्रों का संग्रह करते समय उनके व्यवहार के आधार पर पहले अपनी राय अवश्य अवश्य करना चाहिये। ऐसे अनेक लोग हैं जो प्रतिदिन मिलते हैं पर वह मित्र नहीं कहे जा सकते। आजकल के युवाओं को तो मित्र की पहचान ही नहीं है। साथ साथ इधर उधर घूमना, पिकनिक मनाना, शराब पीना या शैक्षणिक विषयों का अध्ययन करना मित्र का प्रमाण नहीं है। ऐसे अनेक युवक शिकायत करते हुए मिल जाते हैं कि ‘अमुक के साथ हम रोज पढ़ते थे पर वह हमसे नोट्स लेता पर अपने नोट्स देता नहीं था’।
    ऐसे अनेक युवक युवतियां जब अपने मित्र से हताश होते हैं तो उनका हृदय टूट जाता है। इतना ही नहीं उनको सारी दुनियां ही दुश्मन नज़र आती है जबकि इस रंगरंगीली बड़ी दुनियां में ऐसा भी देखा जाता है कि संकट पड़ने पर अज़नबी भी सहायता कर जाते हैं चाहे भले ही अपने मुंह फेर जाते हों। इसलिये किसी एक से धोखा खाने पर सारी दुनियां को ही गलत कभी नहीं समझना चाहिए। इससे बचने का यही उपाय यही है कि सोच समझकर ही मित्र बनायें। अगर किसी व्यक्ति की आदत ही दूसरे को धोखा देने की हो तो फिर उससे मित्र धर्म के निर्वहन की आशा करना ही व्यर्थ है। इस विषय में संत कबीरदास जी का कहना है कि
    ‘कबीर तहां न जाईय, जहां न चोखा चीत।
    परपूटा औगुन घना, मुहड़े ऊपर मीत।
    ऐसे व्यक्ति या समूह के पास ही न जायें जिनमें निर्मल चित्त का अभाव हो। ऐसे व्यक्ति सामने मित्र बनते हैं पर पीठ पीछे अवगुणों का बखान कर बदनाम करते हैं। जिनसे हम मित्रता करते हैं उनसे सामान्य वार्तालाप में हम ऐसी अनेक बातें कह जाते हैं जो घर परिवार के लिये महत्वपूर्ण होती हैं और जिनके बाहर आने से संकट खड़ा होता है। कथित मित्र इसका लाभ उठाते हैं। अगर अपराधिक इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि अपराध और धोखे का शिकार आदमी मित्रों की वजह से ही होता है।
    अतः प्रतिदिन कार्यालय, व्यवसायिक स्थान तथा शैक्षणिक स्थानों पर मिलने वाले लोग मित्र नहीं होते इसलिये उनसे सामान्य व्यवहार और वार्तालाप तो अवश्य करना चाहिये पर मन में उनको बिना परखे मित्र नहीं मानना चाहिए।

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