स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है : तिलक
तिलक जयंती पर विशेष
- स्वीटराधिका राधे-राधे
आग्रहग्रस्त दृष्टिकोण हर बात में मीन-मेख निकालता है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक (जन्म 23 जुलाई 1856, मृत्यु 1 अगस्त 1920) के विचारों पर भी पूर्वाग्रहप्रिय लोगों ने मीन-मेख की लाठियां भांजीं। जब तिलक ने कहा कि 'समाज-सुधार से पहले स्वराज की सोचो।' तो इसे तिलक-विरोधियों ने रूढ़िवादी वक्तव्य बतलाया।
परिणामस्वरूप तिलक पर आलोचनाओं के अंगारे बरसाए गए। आग्रहग्रस्त लोगों ने तिलक को समाज-सुधारों का विरोधी कहा। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत थी। तिलक भी समाज-सुधार चाहते थे, लेकिन सलीके से। वैसे भी यह एक सनातन सत्य है कि विवेकपूर्वक और योजनाबद्ध ढंग से किया गया कार्य सफलता का रंग जमा देता है। सलीके से की गई कोशिश सफलता की सौगात देती है।
यही कारण है कि तिलक ने समाज-सुधार के लिए एक निश्चित कार्ययोजना और उसके व्यवस्थित क्रियान्वयन की बात पर जोर दिया। वैसे भी कहावत है कि 'जल्दी का काम शैतान का।' कोई भी सुधार ताबड़तोड़ नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए। तिलक-दर्शन के अध्येता के नाते मेरा मौलिक मत है कि समाज-सुधार किसी सड़क के उस 'पेंचवर्क' या 'मरम्मत' की तरह नहीं होना चाहिए जो किसी वीवीआईपी के आगमन पर किया जाता है और कुछ दिनों बाद ही पेंचवर्क का दम निकल जाता है।
अपितु समाज-सुधार उस हनुमानजी द्वारा लाई गई संजीवनी की तरह होना चाहिए जिसको सुंघाने से लक्ष्मण की मूर्च्छा समाप्त हो और स्थायी रूप से दम वापस आ जाए। लोकमान्य तिलक इसीलिए सलीके से, सुव्यवस्थित तरीके से समाज-सुधार चाहते थे जो स्थायी हो तथा जिससे समाज की 'दशा और दिशा' बदले। अगर तिलक समाज-सुधारों के विरोधी होते तो वे कभी भी आगरकर तथा चिपलूणकर के साथ मिलकर न्यू इंग्लिश स्कूल की 1 जनवरी 1880 में स्थापना नहीं करते।
तिलक द्वारा अपने साथियों के साथ स्थापित किया गया यह स्कूल ही आगे चलकर 'डेकन एजुकेशन सोसायटी' के रूप में विकसित हुआ। यही नहीं तिलक ने बाद में आगरकर और आष्टे के सहयोग से फर्ग्यूसन कॉलेज खोल दिया था।
शिक्षण-संस्थाएं प्रारंभ करने और कॉलेज खोलने की तिलक की तड़प से पता चलता है कि वे शिक्षा को ऐसा शस्त्र मानते थे जो विकारों को ध्वस्त करके सुधारों का पथ प्रशस्त करती है। लेकिन समाज-सुधार के लिए स्वराज आवश्यक है। यही कारण है कि तिलक ने समाज-सुधार के लिए स्वराज्य की पैरवी की। चूंकि तिलक ने समाज-सुधार से पहले स्वराज की बात की इसलिए विरोधियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। जबकि वास्तविकता यह है कि समाज-सुधार के वाहन के लिए स्वराज की सड़क जरूरी है।
SWEETIE
आग्रहग्रस्त दृष्टिकोण हर बात में मीन-मेख निकालता है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक (जन्म 23 जुलाई 1856, मृत्यु 1 अगस्त 1920) के विचारों पर भी पूर्वाग्रहप्रिय लोगों ने मीन-मेख की लाठियां भांजीं। जब तिलक ने कहा कि 'समाज-सुधार से पहले स्वराज की सोचो।' तो इसे तिलक-विरोधियों ने रूढ़िवादी वक्तव्य बतलाया।
परिणामस्वरूप तिलक पर आलोचनाओं के अंगारे बरसाए गए। आग्रहग्रस्त लोगों ने तिलक को समाज-सुधारों का विरोधी कहा। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत थी। तिलक भी समाज-सुधार चाहते थे, लेकिन सलीके से। वैसे भी यह एक सनातन सत्य है कि विवेकपूर्वक और योजनाबद्ध ढंग से किया गया कार्य सफलता का रंग जमा देता है। सलीके से की गई कोशिश सफलता की सौगात देती है।
यही कारण है कि तिलक ने समाज-सुधार के लिए एक निश्चित कार्ययोजना और उसके व्यवस्थित क्रियान्वयन की बात पर जोर दिया। वैसे भी कहावत है कि 'जल्दी का काम शैतान का।' कोई भी सुधार ताबड़तोड़ नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए। तिलक-दर्शन के अध्येता के नाते मेरा मौलिक मत है कि समाज-सुधार किसी सड़क के उस 'पेंचवर्क' या 'मरम्मत' की तरह नहीं होना चाहिए जो किसी वीवीआईपी के आगमन पर किया जाता है और कुछ दिनों बाद ही पेंचवर्क का दम निकल जाता है।
अपितु समाज-सुधार उस हनुमानजी द्वारा लाई गई संजीवनी की तरह होना चाहिए जिसको सुंघाने से लक्ष्मण की मूर्च्छा समाप्त हो और स्थायी रूप से दम वापस आ जाए। लोकमान्य तिलक इसीलिए सलीके से, सुव्यवस्थित तरीके से समाज-सुधार चाहते थे जो स्थायी हो तथा जिससे समाज की 'दशा और दिशा' बदले। अगर तिलक समाज-सुधारों के विरोधी होते तो वे कभी भी आगरकर तथा चिपलूणकर के साथ मिलकर न्यू इंग्लिश स्कूल की 1 जनवरी 1880 में स्थापना नहीं करते।
तिलक द्वारा अपने साथियों के साथ स्थापित किया गया यह स्कूल ही आगे चलकर 'डेकन एजुकेशन सोसायटी' के रूप में विकसित हुआ। यही नहीं तिलक ने बाद में आगरकर और आष्टे के सहयोग से फर्ग्यूसन कॉलेज खोल दिया था।
शिक्षण-संस्थाएं प्रारंभ करने और कॉलेज खोलने की तिलक की तड़प से पता चलता है कि वे शिक्षा को ऐसा शस्त्र मानते थे जो विकारों को ध्वस्त करके सुधारों का पथ प्रशस्त करती है। लेकिन समाज-सुधार के लिए स्वराज आवश्यक है। यही कारण है कि तिलक ने समाज-सुधार के लिए स्वराज्य की पैरवी की। चूंकि तिलक ने समाज-सुधार से पहले स्वराज की बात की इसलिए विरोधियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। जबकि वास्तविकता यह है कि समाज-सुधार के वाहन के लिए स्वराज की सड़क जरूरी है।
जहाँ हर चीज है प्यारी
ReplyDeleteसभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहाँ चन्दन है इस देश की माटी
तपोभूमि हर ग्राम है
हर वाला देवी की प्रतिमा
बच्चा-बच्चा राम है
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहाँ फूलों का बिस्तर है
जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहां सूरज की थाली है
जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
कही पे नदियाँ बलखाएं
कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
करी प्रार्थना सर्व-सुख की
वही है मेरा हिन्दुस्तां
कहीं गलियों में भंगड़ा है
कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां