sweetie radhika radhey-radhey

Sunday, August 28, 2011

उत्तिष्ठ भारतः


श्री रामलीला मैदान पर मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राघवेन्द्र सरकार के आशीर्वाद में राष्ट्र हित में भ्रष्टाचार नियंत्रण जनांदोलन राष्ट्र-भक्त अन्ना हजारे के नेतृत्व में सफल रहा
यह सचमुच भ्रष्ट एवं निरंकुश भारतीय राजनीति पर जन-मानश की विजय है ..जिसके भविष्य में दूरगामी लाभ राष्ट्र को अवश्य  मिलेंगे !

आश्चर्य हुआ था जब इस देश के कथित युवराज राहुल गाँधी संसद में दिए अपने लिखे-लिखाये भाषण द्वारा इस जन-अभिव्यक्ति को राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध कर रहे थे !
उनके भाषण में था यदि कश्मीर के निवासी कश्मीर को अलग राष्ट्र हेतु आन्दोलन कर दें तो क्या कश्मीर देश से अलग कर दिया जायेगा ?
तो भाईसाहब राहुल जी आपको यह जनांदोलन कश्मीरी आतंकवाद के सदृश दीखता है .. क्या इस आन्दोलन में पुलिश की दमनात्मक प्रक्रिया के बाद भी कोई हिंसा हुई ...
और राहुल जी आप यह भी जान लें यह आन्दोलन देश की एकता व अखंडता के लिए था (जिसमें भाषा-प्रान्त-जातीयता से ऊपर उठकर देश के हर वर्ग ने अपना समर्थन दिया ) देश के टुकडे करने के लिए नहीं ..
और रही सत्य-वात -  तो राहुलजी आप और आपकी कांग्रेश पार्टी तो सदैव से आतंकी कश्मीरियों की सुनती आई है ..धारा ३७० लगाकर आप ही कश्मीर को शेष देश से अलग किये हुए हो ! आपने विस्थापित कश्मीरी पंडितों का दर्द कभी सुना ही नहीं यद्यपि आपके परनाना पंडित नेहरू स्वयं कश्मीरी पंडित समुदाय से थे !!!
आप की दादी जी  स्व.श्रीमती इंदिरा गाँधी भी अपनी शान में राष्ट्र के सपूतों द्वारा जीते गए युद्ध .19971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में वंदी 90000 पाकिस्तानी सैनिकों को शिमला समझौते में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के समक्ष बिना कोई शर्त रिहा कर युद्ध को हार जाती हों .. नहीं तो उस समय हम पाक अधिकृत कश्मीर को हारे हुए पाकिस्तान से वापस ले सकते थे !
इसी प्रकार आपके परनाना जी स्व.प. नेहरू . ने 1947 में तत्कालीन सेनाधिकारियों के मना करने एवं लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की असहमति के बाबजूद भी .. युद्धविराम कराकर एवं संयुक्तराष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाकर  --प्लेट में सजाकर आधा कश्मीर पाकिस्तान को तोहफे में दे दिया था और कश्मीर को विवादित स्थली बना दिया था !
अब आप बताएं कि आप व आपकी पार्टी तो सदा से ही कश्मीर को लुटाती आई है/देश को बाँटती आई है 
एवं जन-आंदोलनों को कभी आपातकाल लगा कभी निरंकुशता कह लूटती आई है
आपके पापाजी स्व.राजीव गाँधी भी देश में एक राष्ट्र-एक कानून को लागू नहीं कर सके---
क्यों मुस्लिम या अन्य पर्सनल ला कानून इस देश की अखंडता को कलंकित करते है ?
..क्या आप कोई और संप्रभुता वाला देश बता सकते हैं जहाँ भारत की भांति अनेकों कानून धार्मिक तुष्टिकरण हेतु लागू हों ?
..क्यों  पोटा जैसा एक अच्छा कानून हटा कर हाल ही में एक भेद-भाव वाला वहुसंख्यक हित विरोधी नया कानून लगाने की हिमायत की जा रही है !?
मि.राहुल क्या  आप बता सकते हैं -
-क्यों आपकी पार्टी ने मंडल आयोग सदृश सिफारिसोंको लागू कर देश को जातीयता के जाल में टुकड़े-टुकड़े कर दिया ?
..आप क्यों जातीय आरक्षण के नाम पर देश-समाज को बाँट रहे हैं ?
रही बात लोगों के एकत्रित हो अनशन करने की तो एम्स अदि उच्च -शिक्षण संस्थानों के विध्यार्थियों के विरोध-हड़ताल के वावजूद भी ..निरपराध-भोले-भाले बेरोजगार युवाओं के द्वारा आत्मदाह करने पर भी आप की पार्टी मंडल के नाम वोट लूट देश एवं देशवासियों को खा रही है !
और आप बोल गए कि यदि लोगों ने कहा तो क्या ?? आरक्षण को ख़त्म कर देंगे  ??
यानि आरक्षण जैसी सामाजिक समरसता को ग्रसित करने वाली बिष-वेल को आप कभी नहीं काटेंगे और बिष-बेल को बढ़ा-चढ़ा कर देश-समाज को बिषदंशों से निष्प्राण कर अपना एवं अपनी प्राइवेट लिमिटेड कांग्रेस पार्टी का गुलाम-बंधुआ मजदूर बनाये रखेंगे 
मुझे व इस सम्पूर्ण देश को पता है कि आप उस काम  को तो कभी नहीं करेंगे जिसमें देश-देशवासियों की आवाज हो ..
आप और आप की पार्टी तो अंग्रेजों की भांति फूट डालो और राज्य करो की नीति  के तहत इस देश को वर्वाद कर शाशन करने पर तुली है 
जन-अभिव्यक्ति को आतंकवाद एवं आतंक्व्वाद-हिंसा को जन-अभिव्यक्ति-मानवाधिकार कह किस को छल रहे हो ?? 
महाशय बहुत हुआ अब जनता जाग गयी है ..
यह तो पहली वारी है कि आपका दमनचक्र टूट गया और आपने जनता के समक्ष क्षमा मांग घुटने टेक दिए .. 
आगे हम और करेंगे अपने महान राष्ट्र की सेवा-उन्नति के लिए
और आप सब राजनीतिज्ञ इसी प्रकार बस देखते रह जाओगे -अपने कुकर्मों की क्षमा मांगते हुए !! 
जय हिंद-वन्दे मातरम -जय भारत !!







कोई दर्द न जाने देश का 
भारत माता के स्नेह का 
स्वाधीनता के साथ ही दिया दंश 
पाकिस्तान का 
झूले थे फंद जो लाल प्यारे 
किया उनका अपमान था 
चीन से पिछलग्गू से 
हराया भारत निष्प्राण सा 
तिब्बत किया उसको समर्पित 
वीटो भी देदी दान कर 
लद्दाख-अरुणाचल  में भी 
रोका न उसको पहचान कर 
केशर के चन्दन जैसा कश्मीर 
छोड़ा आधा गैर मानकर 
लूट लिया ये देश प्यारा 
बाप-दादे की जागीर जानकर 
दुश्मनों को करके निरंकुश 
भोली प्रजा खूब सताई है 
वोटों की खातिर इन्होंने 
गायें भी कटवाई हैं 
धर्म-निरपेक्ष कह-कहा 
धर्म को बांधा कपट में 
अधर्म-विधर्म को पोषित 
कर दिया है जगत में 
आरक्षण विष वेल सम्मुख 
समाज में खींची खाई है 
निज राज्य हेतु ईन पापियों ने 
भ्रष्टाचार की पूंजी जमाई है 
भाग्य से जो शास्त्री-वल्लभ मिले 
दुर्भाग्य ! न इनने चलने दिया 
मार-डाला धोखे से 
न राज्य सत्य का निभने दिया 
आज भी तानाशाह जैसे 
आचरण दिखलाई है 
सत्य की आंधी चली अब
न इनकी भलाई है 
बीत गए वो दिन काले 
भूखी जनता 
इनकी मलाई है 
भारतमाता की जय 
वन्दे मातरम !!  

Friday, August 19, 2011

एक स्त्री का स्वप्न और मर्द की सोच


SWEETIE
'मैं सोचती हूँ एक वक्त ऐसा भी आएगा, जब आदमी औरत के पीछे खड़ा नजर आएगा। ट्रक पर सामान लादने से लेकर हाथी का महावत बनने तक हर काम में औरतों का प्रभुत्व होना चाहिए। आदमी को घर में रुककर खाना बनाना चाहिए और जब स्त्रियाँ काम से लौटें तो उन्हें गोद में बच्चे लिए उनके लिए घर के दरवाजे खोलने चाहिए।' 
(केरल में स्थानीय निकायों के चुनावों से एक दिन पहले एक स्थानीय अखबार में एक महिला के उद्गार) 

जाहिर है कि किसी भी स्त्री का यह एक स्वप्न हो सकता है कि वह पुरुष के बराबर ही नहीं, उससे आगे खड़ी दिखाई दे। समाज में ऐसी कौन-सी स्त्री होगी जिसके मन में कभी यह न आया हो कि पुरुष भी वे सारे काम करें जिन्हें स्त्रियों के काम बताकर पुरुष निर्द्वंद्व घूमते फिरते रहते हैं? आखिर घर संभालना और बच्चे पालना सिर्फ स्त्री के ही काम क्यों हों?

केरल की स्त्री का यह स्वप्न नितांत स्वाभाविक और मानवीय है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह स्वप्न एक दिन सच भी साबित हो जाए। पश्चिमी यूरोप के अनेक देशों में पुरुष घर के काम में पूरा हाथ बँटाते हैं। वे बच्चे पालते हैं, उनके डायपर या पोतड़े बदलते हैं, उनके लिए दूध की बोतल तैयार करते हैं और हर जिम्मेदारी निभाते हैं। कुछ देशों में तो पिताओं को भी प्रसूति सरीखा अवकाश मिलता है। 

केरल की एक स्त्री अगर आज अपने लिए ऐसा स्वप्न देख रही है, तो उसके पीछे कुछ कारण हैं। केरल में पंचायतों के चुनाव हो रहे हैं और इन चुनावों में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं। महिलाएँ 50 प्रतिशत से भी ज्यादा सीटों पर जीत कर आएँगी क्योंकि अनेक सामान्य वर्ग की सीटों पर भी उनकी जीत की प्रबल संभावना है। केरल में योजनाओं के मद का एक तिहाई पैसा राज्य सरकार स्थानीय निकायों को उपलब्ध कराती है। 

SWEETIE
स्थानीय निकायों में अपना प्रभुत्व कायम होने के बाद महिलाएँ इस पैसे को खर्च करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएँगी। यह सही है कि केरल रातोंरात स्त्रियों के लिए स्वर्ग नहीं बन जाएगा लेकिन इतना जरूर माना जा रहा है कि इससे केरल की आम स्त्री का सशक्तीकरण होगा और समाज में उसे उस तरह के लिंग भेद का सामना नहीं करना पड़ेगा जिसका उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश आदि में आमतौर पर करना पड़ता है। 

इन राज्यों में आज भी कन्याओं को गर्भ में ही मार दिया जाता है। यही कारण है कि इन राज्यों में प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम है। यह अनुपात गड़बड़ाने से समाज में एक अलग तरह का असंतुलन पैदा हो गया है। इसका खामियाजा भी स्त्री जाति को ही भुगतना पड़ रहा है। हरियाणा और पंजाब में स्त्रियों की कमी होने से पिछले वर्षों में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त के समाचार भी सुनने में आए थे। यह ठीक है कि समय के साथ समाज में कुछ प्रगतिशील बदलाव भी हुए हैं, लेकिन आज भी अनेक जगह स्त्री को एक वस्तु की तरह देखा और समझा जाता है। 

कृषि आधारित समाजों में प्रायः हर परिवार की कामना पुत्र पाने की होती थी। माना जाता था कि पुत्र से ही वंश आगे चलेगा और खेतिहर कामों आदि में पुत्र ही ज्यादा उपयोगी होगा। यह क्या कम चौंकाने वाली बात है कि भारतीय परंपरा में धन और यश के साथ पुत्र की एषणा या कामना का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। याद नहीं पड़ता कि किसी राजा ने पुत्री की कामना से कोई यज्ञ आदि किया हो। 

अभी हाल ही में मुझे यह जानकर ताज्जुब हुआ कि मेरे एक परिचित पुत्र की चाह में अपनी पत्नी को लेकर बैंकाक गए थे। उनके पहले से एक लड़की है। थोड़े दिनों बाद उनके लड़का भी हो गया। बताया गया कि उन्होंने बैंकाक के एक अस्पताल में आईवीएफ तकनीक से अपनी पत्नी को गर्भधारण कराया। 

उन्हें कुछ दिन बैंकाक में रहना पड़ा और इस पर लगभग 5 लाख रुपए का खर्च आया। मेरे परिचित एक छोटे-मोटे उद्योगपति हैं मगर आज के युग में भी जब महिलाएँ बड़े-बड़े बिजनेस संभाल रही हैं उन्हें आगे चलकर अपने कारोबार के लिए एक अदद पुत्र ही चाहिए। तो सामंतवादी समाजों के दिन लदने और प्रगति और विकास की रोशनी आने के बावजूद हमारे समाज में पुत्रेषणा कायम है। 

SWEETIE
मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने हाल ही में चीन के बारे में एक समाचार पढ़ा। चीन ने बड़े प्रयत्न से समाजवादी समाज बनाया था। यह अलग बात है कि बाद में उसका विचलन पूंजीवादी रास्ते के रूप में भी देखने को मिला। चीन में एक परिवार-एक संतान की नीति का पालन कराया जाता है क्योंकि राज्य को लगता है कि बढ़ती आबादी को न रोका गया तो एक दिन संसाधनों की कमी हो जाएगी। 

खबर में बताया गया है कि एक गर्भवती चीनी महिला को परिवार कल्याण विभाग जबरदस्ती पकड़ कर ले गए और 8 महीने के उसके शिशु का मारपीट कर गर्भपात करा दिया। इस महिला के पहले से एक संतान थी-नौ बरस की बच्ची। अब वह एक लड़का चाहती थी। चीन में दूसरी औलाद पैदा करने वाले से वैसे ही कई रियायतें छीन ली जाती हैं मगर यहाँ तो राज्य ने जुल्मोसितम की हद ही कर दी। चीन में मीडिया पर सरकार का नियंत्रण है, फिर भी वहाँ के लोग इंटरनेट पर इस घटना का वर्णन पढ़ रहे हैं और उत्तेजित भी हैं। 

जो भी हो यह सवाल अपनी जगह है कि हमारे परिवारों को आज भी लड़का ही क्यों चाहिए? लड़की पैदा करने वाली स्त्री हमारे समाज में आज भी कई बार उपेक्षा और पारिवारिक नफरत का शिकार होती है, जैसे लड़की पैदा करने का दोष उसी का हो। 

तो क्या यह माना जाए कि हमारे सामंतवादी सोच आज भी जिंदा है और प्रगति और विकास की रोशनी खुद पथरा गई है? क्या हमारे यहाँ बड़े-बड़े पदों पर विराजमान स्त्रियों का सिर्फ प्रतीकात्मक महत्व ही है और उनके प्रति समाज के नजरिए में कोई बड़ा गुणात्मक बदलाव नहीं आया है?

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है


- स्वीटराधिका राधे-राधे
SWEETIE

आग्रहग्रस्त दृष्टिकोण हर बात में मीन-मेख निकालता है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक (जन्म 23 जुलाई 1856, मृत्यु 1 अगस्त 1920) के विचारों पर भी पूर्वाग्रहप्रिय लोगों ने मीन-मेख की लाठियां भांजीं। जब तिलक ने कहा कि 'समाज-सुधार से पहले स्वराज की सोचो।' तो इसे तिलक-विरोधियों ने रूढ़िवादी वक्तव्य बतलाया। 

परिणामस्वरूप तिलक पर आलोचनाओं के अंगारे बरसाए गए। आग्रहग्रस्त लोगों ने तिलक को समाज-सुधारों का विरोधी कहा। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत थी। तिलक भी समाज-सुधार चाहते थे, लेकिन सलीके से। वैसे भी यह एक सनातन सत्य है कि विवेकपूर्वक और योजनाबद्ध ढंग से किया गया कार्य सफलता का रंग जमा देता है। सलीके से की गई कोशिश सफलता की सौगात देती है। 

यही कारण है कि तिलक ने समाज-सुधार के लिए एक निश्चित कार्ययोजना और उसके व्यवस्थित क्रियान्वयन की बात पर जोर दिया। वैसे भी कहावत है कि 'जल्दी का काम शैतान का।' कोई भी सुधार ताबड़तोड़ नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए। तिलक-दर्शन के अध्येता के नाते मेरा मौलिक मत है कि समाज-सुधार किसी सड़क के उस 'पेंचवर्क' या 'मरम्मत' की तरह नहीं होना चाहिए जो किसी वीवीआईपी के आगमन पर किया जाता है और कुछ दिनों बाद ही पेंचवर्क का दम निकल जाता है।

अपितु समाज-सुधार उस हनुमानजी द्वारा लाई गई संजीवनी की तरह होना चाहिए जिसको सुंघाने से लक्ष्मण की मूर्च्छा समाप्त हो और स्थायी रूप से दम वापस आ जाए। लोकमान्य तिलक इसीलिए सलीके से, सुव्यवस्थित तरीके से समाज-सुधार चाहते थे जो स्थायी हो तथा जिससे समाज की 'दशा और दिशा' बदले। अगर तिलक समाज-सुधारों के विरोधी होते तो वे कभी भी आगरकर तथा चिपलूणकर के साथ मिलकर न्यू इंग्लिश स्कूल की 1 जनवरी 1880 में स्थापना नहीं करते। 

तिलक द्वारा अपने साथियों के साथ स्थापित किया गया यह स्कूल ही आगे चलकर 'डेकन एजुकेशन सोसायटी' के रूप में विकसित हुआ। यही नहीं तिलक ने बाद में आगरकर और आष्टे के सहयोग से फर्ग्यूसन कॉलेज खोल दिया था। 

शिक्षण-संस्थाएं प्रारंभ करने और कॉलेज खोलने की तिलक की तड़प से पता चलता है कि वे शिक्षा को ऐसा शस्त्र मानते थे जो विकारों को ध्वस्त करके सुधारों का पथ प्रशस्त करती है। लेकिन समाज-सुधार के लिए स्वराज आवश्यक है। यही कारण है कि तिलक ने समाज-सुधार के लिए स्वराज्य की पैरवी की। चूंकि तिलक ने समाज-सुधार से पहले स्वराज की बात की इसलिए विरोधियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। जबकि वास्तविकता यह है कि समाज-सुधार के वाहन के लिए स्वराज की सड़क जरूरी है।

फोर्थ डिग्री कविता का फॉर्मूला


स्वीटराधिका राधे-राधे
SWEETIE
सारा पुलिस महकमा परेशान-हलकान था। अपराधी इतने शातिर और चट्टान की तरह मजबूत हो गए थे कि उन्हें कितना ही मारो-कूटो-पीटो, अपने जुर्म को उगलते ही नहीं थे। अपराधियों में अचानक आए इस परिवर्तन से कांस्टेबल से लगाकर होम मिनिस्टर तक आश्चर्यचकित थे। आखिर सभी अपराधियों का एकाएक शरीफ हो जाना किसी के गले नहीं उतर रहा था। पुलिस का चिर-परिचित फॉर्मूला, थर्ड डिग्री फॉर्मूला भी छोटे-छोटे अपराधियों के सामने ही ऐसे औंधे मुँह धराशायी हुआ कि जीरो डिग्री से भी बदतर साबित हुआ। सरकार को भी सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, क्या न करे। कुल मिलाकर यह मुद्दा पूरे देश के लिए अहम मुद्दा बन गया था।

जब चिल्ल-पौं मची तो हमेशा की तरह मामले से पीछा छुड़ाने के लिए आयोग गठित कर दिया गया। दस साल बाद आई आयोग की रिपोर्ट में अपराधियों से राज उगलवाने के दस रामबाण अचूक फॉर्मूले सुझाए गए थे। आयोग की रिपोर्ट से नेता, अभिनेता, जनता सभी इसलिए भी निश्चिंत और संतुष्ट थे कि पूरे एक साल में जब एक फॉर्मूला खोजा गया है तो वह रामबाण के साथ ही श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र की तरह भी होगा। 

उत्साहित पुलिस ने दृढ़ इच्छाशक्ति और पूरे शारीरिक व आत्मबल से आयोग के फॉर्मूलों को अपराधियों पर प्रयोग किया। पूरी मुस्तैदी के साथ क्रियान्वित किए गए एक से दस तक के फॉर्मूलों का अपराधियों पर ऐसा असर हुआ जैसे वे टीवी पर राजू श्रीवास्तव का लॉफ्टर चैलेंज शो देख रहे हों। हताश होकर सरकार ने अपना माथा ही नहीं हाथ, पैर, आँख, कान, जुबान सभी पीट लिए।

SWEETIE
एक कस्बे के थाने के टीआई सा. अपने ऑफिस में थके-हारे बैठे थे। दरअसल, उन्होंने एक शातिर और पुराने जिलाबदर अपराधी को बमुश्किल पकड़ा था और उसकी डेढ़ घंटे तक की गई धुनाई से लस्त-पस्त हो गए थे। टीआई साहब ने संतरी को कड़क मीठी चाय लाने का ऑर्डर मारा। इस देश के सौभाग्य से टीआई साहब कवि भी थे। संतरी ने जैसे ही गरमा-गरम चाय टेबल पर रखी, उन्होंने गटागट हलक में उड़ेल ली। मुँह में जर्दे का गुटका दबाते ही उनके शरीर से टीआई का पद तत्काल प्रभाव से टर्मिनेट हो गया और उन्होंने कवि के पद पर अपनी आमद दर्ज करा दी।

टीआई साहब सर्वोतोन्मुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। सभी रसों की काव्य-सर्जना में उनका समान रूप से अधिकार था। कवि के पद पर ज्वाइनिंग रिपोर्ट देने के बाद उन्होंने आठ-दस कविताएँ लिख डालीं। टीआई साहब कविता लिखने के बाद ऐसे खुश, जैसे उन्हें एसपी बना दिया गया हो। थोकबंद कविताएँ लिखने के बाद आम कवियों की तरह उनके मन में उन्हें किसी को सुनाने की लहरें उठने लगीं। थाने के पूरे स्टाफ को तो वो अपनी कविताओं से बरसों से बोर कर रहे थे। टीआई ने सोचा, इन ताजी रचनाओं को किसी श्रोता को तुरंत सुनाना जरूरी है नहीं तो ये बासी हो जाएँगी।

SWEETIE
काफी देर के चिंतन-मनन के बाद सुयोग्य श्रोता की तलाश में उनका मन थाने में बंद उस अपराधी की ओर जा अटका, जिसकी उन्होंने धुनाई की थी। साला! मेरी कविता सुनेगा तो झक मारकर दाद भी देगा और ताली भी बजाएगा। टीआई साहब ने लॉकअप का ताला खुलवाया और रचनाओं सहित अंदर जा धमके। सहमा अपराधी खड़ा हो गया। टीआई साहब बोले! बंधु! कुछ ताजा कविताएँ पेश हैं। 

मगर यह क्या, अपराधी जैसे-तैसे तीन कविताएँ झेलने के बाद ही लाइन पर आ गया और बोला बस! बस!! टीआई साहब मुझे चौथी कविता मत सुनाइए। मैं आपको सब कुछ सच-सच बताता हूँ। बेचारे अपराधी ने फटाफट जुर्म का इकबाल कर लिया। फिर क्या था... टीआई साहब की फोर्थ डिग्री कविता का फॉर्मूला उन सभी थानों में लागू कर दिया गया, जहाँ पदस्थ टीआई होने के साथ ही कवि भी थे। अब सरकार नए थानेदार की भर्ती हेतु अनिवार्य योग्यता में कवि होना जरूरी कर रही है। कविता अपराधियों पर भी असर करती है, ये लोगों ने पहली बार जाना।  

लड़के-लड़कियों की अलग पढ़ाई


SWEETIE RADHIKA RADHEY-RADHEY  *
अमेरिका में अब फिर से लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग क्लासरूम लोकप्रिय हो रहे हैं। नए शोध में पाया गया है कि अलग-अलग रखने पर लड़के और लड़कियाँ न केवल आराम से खाते हैं, बल्कि पढ़ाई और आदतों पर भी अच्छा असर हुआ।

80 से 90 के दशक में भारत में को एजुकेशन यानी लड़के-लड़कियों के लिए एक साथ पढ़ाई इतनी लोकप्रिय हुई कि यह फैशन में तब्दील हो गई। अब पटरी फिर पुराने दिनों कि ओर लौट रही है क्योंकि शिक्षाविदों को समझ में आ रहा है कि अलग-अलग रखने पर लड़के और लड़कियों में काफी अच्छे बदलाव देखे गए हैं।

अमेरिका के कैंसास सिटी के तीन स्कूलों में छात्रों के बीच दुर्व्यव्हार को कम करने के लिए लड़के और लड़कियों को अलग-अलग लंच देना शुरू किया गया है। नतीजा सामने आया कि लड़के और लड़कियों दोनों की खाने की आदतें सुधरी। कैंसास का मिडिल स्कूल द विषेटे में 11 से 14 साल के लड़के-लड़कियों के लिए अब खाना अलग-अलग होता है। 

छात्रों के बीच छेड़खानी कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। प्लेजेंट वैली मिडिल स्कूल के प्रधान अध्यापक माइकल आर्किबेक कहते हैं, 'लड़कियों को यह बहुत पसंद आ रहा है क्योंकि लड़कों के बगैर उनके पास अपने लिए समय होता है और लड़के भी लड़कियों को रिझाने के लिए अतिशयोक्ति नहीं करते। मुझे लगता है कि इस उम्र के लिए एकदम सही तरीका है।' 

लेकिन प्रधानाध्यापक को सबसे अच्छी बात तो यह लग रही है कि वह बच्चे अपना खाना पूरा खत्म कर रहे हैं। इसका मतलब कि खाना फेंका नहीं जाता और बच्चे भूखे पेट पढ़ाई नहीं करते। 'मुझे विश्वास ही नहीं होता कि इतने बच्चे अब खाना खा रहे हैं।' 

वहीं विषेटे के ट्रूसडेल मिडिल स्कूल में पिछले दो साल से लड़के और लड़कियों के लिए दोपहर का भोजन अलग-अलग होता है। प्रिंसिपल जेनिफर सिनक्लेर कहती हैं कि इसका अच्छा असर बाद में भी इन बच्चों पर देखा जा सकता है। सिनक्लेर कहती हैं कि बच्चों को यह पसंद भी आ रहा है क्योंकि हाल ही में जब साथ में खाने का प्रस्ताव रखा गया तो बच्चों ने कोई रुचि नहीं दिखाई। 

कैंसास के शिक्षा विभाग के प्रवक्ता का कहना है कि सिर्फ विषेटे में ही इस तरह के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। वैसे अमेरिका में लड़के और लड़कियों की अलग पढ़ाई धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है क्योंकि सामने आया है कि ऐसा करने से बच्चे पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देते हैं और उनके सामाजिक व्यव्हार में अच्छा बदलाव आता है। 
जनवरी 2011 में कम से कम 524 अमेरिकी पब्लिक स्कूल ऐसे थे जहाँ लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग कमरे थे। जबकि 2002 में ऐसे एक दर्जन स्कूल भी नहीं थे

Wednesday, August 17, 2011

बिनु हिंदुत्व भारत मृत सी काया . मृत है देश ,मृत जन-मानष चीन्हो !



बिनु हिंदुत्व बौरी भई जनता 
राष्ट्र अखंड बिभाजन कीनो 
पाकिस्तान सो शत्रु कीन्हो 
लूट मचाई शेष देश में 
पंगु अखंड मंडल करि दीन्हो  
स्वाभिमान को भूल गए सब 
पिट-पिट कर लालच मन लीन्हो 
राम-श्याम-शिव छोड़ के बन्धु 
कैसो भ्रम धर्म-निरपेक्ष चीन्हो 
सत्तासीन लुटेरे डाकू 
तौ कैसे होय सुख से जीनो 
गुजरात प्रान्त समृद्धि सब सम्मुख 
हिंदुत्व ही सबको सुख दीनो  
जाति-आरक्षण तृष्णा स्वारथ 
मृग मरीचिका न कोई सुख कीन्हो 
एकता हिन्दू मात्र की होवे 
सत्य-वचन मम तव ही भलो होन्हो 
"स्वीट राधिका " हेरत-टेरत 
हिंदुत्व ही या देश को गहनो 
बिनु हिंदुत्व ये मृत सी काया 
मृत है देश मृत जन-मानष चीन्हो  


जयहिंदुत्व -जयभारत    

Friday, August 5, 2011

वन्दे मातरम !


बिट्रिश राज समाप्त हुआ था अभी स्वतंत्रता वाकी है !
गुंडे-बदमाशों-चोरों से कराना सिंघासन खाली है !!
स्वराज्य का सपना सच होने में देर लगेगी न कोई अब  !
लोकमान्य का कहना होगा मिलकर तिलक करेंगे सब !!
टूटे हुए भाग देश के पाने होंगे पुनः हमें !
तव ही प्यारा देश हमारा होगा  पूर्ण स्वतंत्र सच में !!
सच्ची श्रृद्धा वीर-बलिदानी शहीदों के चरणों में यही !
भ्रष्टाचार मिटे भारत से सुखी हों भारतवासी सभी !!
जगदगुरु (भारत धर्मं-भारत राष्ट्र) को पुनः इस जग में वोही पद देना होगा !
कर्तव्यनिष्ठ -धर्मसेवक - वीर और चारित्रिक भारतवासी बनना होगा !!
वन्देमातरम जयकारों में हम शंखनाद करके महा !
पुनि समर महाभारत सृजा पायें सत्य भारत को यहाँ !!

हारेंगे पुनि शकुनी-दुर्योधन एक न चलेही कायरों की !
पार्थ-सारथि के निर्देशन जय गीता ज्ञान विचारों की !!
पार्थ सदृश पुनि भारतमाता की रक्षा करनी होगी !
सत्य-ज्ञान-भक्ति केशव से सीख हमें लेनी होगी !!
धर्मं ध्वजा हम लहरायेंगे स्वाभिमान के अंचल में  !
जय हिंदुत्व-जय भारत कहके पुलकित होंगे जग भर में !!

भारत माता की जय ! वन्दे मातरम !








परन्तु दुर्भाग्य से हमारे अपने भारत वासियों की कुत्सित लालच-स्वार्थों के कारण सरकार-नेता तुष्टिकरण के द्वारा भारत धर्मं-भारत राष्ट्र विरोधी शक्तियों को बढ़ावा देकर सच्चे राष्ट्रभक्तों-वीर-बलिदानी सेवकों का अपमान कर भ्रष्टाचार रूपी गर्त में देश को धकेल रहे  है .. 
भाषा-क्षेत्र-जाति-संप्रदाय में महान आर्य समुदाय को बाँट कर आपस में लड़ाया जा रहा है ! 
एक न होने देकर विधर्मी-बिध्वंसकारी आतंकी  शक्तियों को पुष्ट किया जा रहा है ! 
मित्रो, हमें आवश्यकता है एकता की सम्पूर्ण हिन्दू समाज की परमश्रेय दाई एकता की ..
जिसके छत्र-छाया में हम सहज ही राष्ट्र को एक अच्छी चारित्रिक -राष्ट्र-धर्म सेवी सरकार प्रदान कर अपनी एवं राष्ट्र की उन्नति करें ! 
जय हिंद !!