राष्ट्र-धर्मं रक्षार्थ एक और महाभारत की परमावश्यकता
हाय ओ भारत श्रेष्ठ धरा, तेरी संतति चेत नहीं पाई !
जग चेता सब बने धुरंधर ,ज्ञान भूमि है मुरझाई !!
आके पीट गए लुटेरे ,अजर-अमर की संतानों !
अब भी चेत लो चेती जायतो ,मूरखता को पहिचानो !!
बातें बनाओ कुछ न मिलेगा , स्वाभिमान पाना है तो !
एक बार पुनि पुण्य भूमि पर, विगुल समर बज जाने दो !!
"महाभारत" अनिवार्य है ,धर्मं-राष्ट्र संस्थापनार्थ !
बलि चढ़ जाएँ कायरता अरु, क्षुद्र-क्षुद्र से अनत स्वार्थ !!
जय हिंदुत्व-जय भारत
मित्रो , आज से हम भारतीय स्वाभिमान पर , भारतीय जन-मानष के नैतिक-आध्यात्मिक एवं अन्यान्य प्रकार के विविध चारित्रिक पतनों के निवारणार्थ एक समीक्षा करेंगे कि हम भारतीय आत्मसंतुष्ट, पूर्ण स्वाभिमान से क्षुद्र तृष्णा-अभिलाषाओं में किस प्रकार निज स्वाभिमान को भुला बैठे हैं , परिणाम स्वरुप विगत हजारों बर्षों से किस प्रकार आतताइयों-अधर्मियों एवं दुष्ट-व्यापारियों के अत्याचारों को सह आज निर्लज्जता की सीमा पर पहुँच राष्ट्र-धर्मं को भूल "मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति " वाली लोकोक्ति के निकट अप्रतक्ष परतंत्रता की बेड़ियों में जकड गए हैं ! जिसका अन्धकार हमें दृष्टि हीन बनाये हुए है , हमें भविष्य के विनाशों का बोध नहीं है , आज सर्वत्र आपा-धापी , मेरा-तेरी लूट-खसूट मची है ! अपने भोग-विलाश में अन्य की पीड़ा-शोषण अनुभव नहीं होता ! झूंठे-झूंठे राग गाकर स्वयं को संगीत सम्राट सिद्ध कर मिथ्या संतुष्टि पाने जैसी मूर्खता रूपी वयार भारतीय वातावरण में चहुँ और वह रही है ! कहीं भाषा के नाम पर , कहीं जाति के नाम पर , कहीं क्षेत्रवाद के नाम पर गरल सदृश राजनीती जोकि सच्चे अर्थों में घोर अराजनीति है, की जारही है , जन-मानष के विवेक को विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों-कुचक्रों से नष्ट किया जा रहा है !
आगे में चर्चा करुँगी कि किस प्रकार भारत राष्ट्र-धर्मं को जयचन्द रूपी वर्त्तमान नेताओं की घृणित कुचालों ने पंगु वना पुनः आताताइयों-अधर्मियों के अत्याचारों के तले देश को धकेला है ! किस प्रकार जन-मानष की विवेक शून्यता से कांग्रेश रूपी डाकिनी इस महान राष्ट्र-संस्कृति का लहू पी-पी कर घोटाले कर रही है, किस प्रकार कम्युनिस्टी ड्रैगन अपनी आग से इस पावन राष्ट्र-संस्कृति-धर्मं को कुटिल कांग्रेश के संरक्षण में बर्षों से झुलसा रहा है ! कैसे इस पतित-पावनी गाथा में छोटे-छोटे , भाषाई-जाति एवं क्षेत्र रूपी संकीर्ण विचार-धाराओं से ग्रसित साँप जैसे विभिन्न राजनैतिक दल ,इसी भ्रष्ट कांग्रेश के आश्रय-बढ़ावे में देश एवं धर्मं में लगातार अपने बिष भरे दंश चुभो,देश-धर्मं का विनाश करने में तुले हैं !
मित्रो , आज से हम भारतीय स्वाभिमान पर , भारतीय जन-मानष के नैतिक-आध्यात्मिक एवं अन्यान्य प्रकार के विविध चारित्रिक पतनों के निवारणार्थ एक समीक्षा करेंगे कि हम भारतीय आत्मसंतुष्ट, पूर्ण स्वाभिमान से क्षुद्र तृष्णा-अभिलाषाओं में किस प्रकार निज स्वाभिमान को भुला बैठे हैं , परिणाम स्वरुप विगत हजारों बर्षों से किस प्रकार आतताइयों-अधर्मियों एवं दुष्ट-व्यापारियों के अत्याचारों को सह आज निर्लज्जता की सीमा पर पहुँच राष्ट्र-धर्मं को भूल "मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति " वाली लोकोक्ति के निकट अप्रतक्ष परतंत्रता की बेड़ियों में जकड गए हैं ! जिसका अन्धकार हमें दृष्टि हीन बनाये हुए है , हमें भविष्य के विनाशों का बोध नहीं है , आज सर्वत्र आपा-धापी , मेरा-तेरी लूट-खसूट मची है ! अपने भोग-विलाश में अन्य की पीड़ा-शोषण अनुभव नहीं होता ! झूंठे-झूंठे राग गाकर स्वयं को संगीत सम्राट सिद्ध कर मिथ्या संतुष्टि पाने जैसी मूर्खता रूपी वयार भारतीय वातावरण में चहुँ और वह रही है ! कहीं भाषा के नाम पर , कहीं जाति के नाम पर , कहीं क्षेत्रवाद के नाम पर गरल सदृश राजनीती जोकि सच्चे अर्थों में घोर अराजनीति है, की जारही है , जन-मानष के विवेक को विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों-कुचक्रों से नष्ट किया जा रहा है !
आगे में चर्चा करुँगी कि किस प्रकार भारत राष्ट्र-धर्मं को जयचन्द रूपी वर्त्तमान नेताओं की घृणित कुचालों ने पंगु वना पुनः आताताइयों-अधर्मियों के अत्याचारों के तले देश को धकेला है ! किस प्रकार जन-मानष की विवेक शून्यता से कांग्रेश रूपी डाकिनी इस महान राष्ट्र-संस्कृति का लहू पी-पी कर घोटाले कर रही है, किस प्रकार कम्युनिस्टी ड्रैगन अपनी आग से इस पावन राष्ट्र-संस्कृति-धर्मं को कुटिल कांग्रेश के संरक्षण में बर्षों से झुलसा रहा है ! कैसे इस पतित-पावनी गाथा में छोटे-छोटे , भाषाई-जाति एवं क्षेत्र रूपी संकीर्ण विचार-धाराओं से ग्रसित साँप जैसे विभिन्न राजनैतिक दल ,इसी भ्रष्ट कांग्रेश के आश्रय-बढ़ावे में देश एवं धर्मं में लगातार अपने बिष भरे दंश चुभो,देश-धर्मं का विनाश करने में तुले हैं !
! राधे-राधे !
ये शत्रु मानवता के हैं ! ये शत्रु भारत देश के हैं ! ये शत्रु धर्मं-संस्कृति के हैं !
जग में केवल माया दरशे !
अन्य नहीं कछु रीति नीति है !
उपदेशें वनें सिद्ध-सुजान !
अपनी-अपनी कूट नीति है !!
स्वार्थ बोले माया डोले !
रचे कुचाल पाप के फंदे !
पर उपकार कठिन भयो दुष्कर !
कायरता के मलिन पुलंदे !!
योग-ध्यान सब ढोंग में दर्शें !
सत्य छिपे अब झूंठ के धुन्धे !!
झूंठे राग गाय करें भक्ति !
भ्रम ही करें कहें भक्त हैं वन्दे !!
उपदेशें जन में मायावी !
करें रात दिन छल के धंधे !!
बगुला भगत सी रीति इनकी !
कर्म महा हिंसक अरु गंदे !!
कोई कहे देश कोई कहे धर्मं !
चतुर महा ये शिकार के छंदे !!
वाक जाल में लूट लें सब को !
निज स्वार्थ वस कुटिल परिंदे !!
भगवानहु को बेच दें पापी !
रेतें गले चलाय कें रंदे !!
जो मूरख मिल जाय इन्हें जब !
चेला करि पहिनावें फंदे !!
कंठी-माला अरु गुरु निष्ठां !
व्यर्थ है सब ये भ्रम के पण्डे !!
कहें गोविन्द करें तृप्त इन्द्री !
मठ इनके भये पाप के अंडे !!
विलासिता भोगें संयमी कहावें !
ये सब निश्चर जाति के वन्दे !!
"स्वीट राधिका" कहे जन-मानष से !
धुनों इनको अब लेके डंडे !!
ये शत्रु मानवता के हैं ! ये शत्रु भारत देश के हैं ! ये शत्रु धर्मं-संस्कृति के हैं ! इनका सामाजिक बहिष्कार स्वस्थ्य समाज के लिए अनिवार्य है !
आओ संकल्प लें ऐसे धार्मिक-आध्यात्मिक-राजनैतिक लुटेरों को इनकी विलासिता-सत्ता से उतार फेंकें - सनातन धर्मं -सनातन संस्कृति -श्रीमदभगवद गीता के द्वारा "महाभारत" रूपी धर्मं युद्ध का परम आदर्श-अनिवार्य भगवद सन्देश प्रदान कर रही है !यदि आपकी इस महाभारत में योद्धा बन संकल्पित होने की इच्छा है तो प्रस्तुत नोट को अपने सभी मित्रों को पोस्ट करें एवं ब्लॉग "राधे-राधे " से निम्नांकित एड्रस लिंक पर क्लिक कर फोलो करें
sweetieradhe.blogspot.com
radhikagautam.blogspot.com
...राधे-राधे..हरेकृष्ण !!
क्या आपको ये देश आज स्वतंत्र-आत्मतुष्ट दिखता है ? क्यों गुंडे-बदमाश उच्च पदों पर स्थापित हैं ? क्यों एक ही परिवार के चारों ओर देश की राजनीति घूम जाति है ? क्यों पुलिस बिट्रिश काल की तरह जनता की सेवक न हो कर भक्षक है ?क्यों भारतीय धन स्विटजर-लेंड की बैंकों में है ? क्यों आज जनता बेरोजगार एवं गरीब है ? क्यों आरक्षण रूपी बिष वेळ देश में व्याप्त है ? क्यों जम्मू & कश्मीर के लिए अलग से संबिधान है ? क्यों भारत में समान कानून-न्याय व्यवस्था नहीं है , जबकि छद्म धर्म निरपेक्ष वादी भारत को धर्मं निरपेक्ष कहते हैं , क्यों मुस्लिम विधान के नाम से अलग से क़ानूनी आख्या है ? जब अमरनाथ-कैलाश मान सरोवर जाने के लिए कोई व्यवस्था-अनुदान नहीं तो क्यों काबा जाने के लिए राजकीय सहायता ?क्या हिन्दू होना संकीर्ण-हिंसक या पाप है ,जो इस देश में हिन्दू-हिंदुत्व कहने पर उसे राजनैतिक अश्प्रस्य करार दिया जाता है ? नरेन्द्र मोदी राष्ट्र-भक्त या भारत सम्मान क्यों नहीं है जो उसे भारत में व विदेशों के द्वारा भी अपमानित कराया जाता है , जबकि मोदी आज एक मात्र राजनैतिक व्यक्तित्व है जिसका मेरे द्वारा उल्लेख उसके राष्ट्र निष्ठां कार्यों-सेवा से हो ही जाता है ? क्यों कर देश में साधू-संतों के नाम पर बहिरुपिये नाना भांति के स्वांग रच कर जन-मानष को लूट/खा रहे है ? मित्रो इसका एक ही कारण है परतंत्रता ! अभी हममें परतंत्रता वाकी है , आवश्यकता है जन-चेतना की ,एक और धर्मं युद्ध की -एक और "महाभारत" की !
!!स्वीट राधिका राधे-राधे!!
मित्रो, यदि ये सब पढ़कर आपका लहू राष्ट्र एवं धर्मं सेवा के लिए उबलता हो , आपकी मति राष्ट्र एवं धर्मं सेवा की दिशा में सोचती है-कुछ सेवा की उत्सुक है तो सर्व प्रथम इस नोट को अपने सभी मित्रों-परिचितों को पोस्ट करें तथा राष्ट्र एवं धर्मं सेवा ब्लॉग "राधे-राधे" से जुड़ें व फोलो करें, ब्लॉग ऐड्रस निम्नांकित लिंक पर क्लिक करें !
sweetieradhe.blogspot.com
radhika-gautam.blogspot.com
राधे-राधे..हरेकृष्ण !!
jay mahakal jay vishwanath !
jay baidhya nath jay som nath !!
jay mamleshwar jay rameshwar !
jay ghrishneshwar kedar nath !!
jay nageshwar jay trayambakeshwar !
jay gopeshwar pashupati nath !!
jay bhuteshwar jay asheshwar !
jay rangeshwar jay adi nath !!
jay mahabaleshwar jay mahadev !
jay panch madeshwar jay gauri nath !!
jay vishwambhar jay digamvar !
jay jagat pita aru jagat mat !!
audhar dani jay ashutosh !
karunavatar jay bhut nath !!
jay-jay shambhu-jay-jay shiva ji !
jay-jay shankar jay uma nath !!
jay gauri pati kailash vasi !
jay amar nath jay bhakt nath
shri radhey -radhey
har-har mahadev